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[कबीर की साखी
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परिस्थितियो से दूर रहकर नाम साधन के लिए उपदेश दिया है।(१)"सूता" से तात्पर्य है अज्ञान निशा मे कतंव्य की ओर से विमुख या प्रसुप्त ।(३) जागो से तात्पर्य है सचेत होकर । (४) एक दिन से तात्पर्य है अन्ततोगत्वा । (५)"भी" का तात्पर्य तो ।" (६) "सोवणा" से कवि का आशा है मृत्यु को प्राप्त होना । (७)लबेॱॱॱ पसारि से तात्पयॆ है पैर फैला कर । "लंबे पांव पसारि" का प्रयोग कवि ने कहावत के रूप मे किया है । अशिक्षित कबीर ने प्रस्तुत कहावत का प्रयोग बड़े ही यथार्थ और स्वाभाविक शौली मे किया है।

शच्दार्थ—सूता=सोता=सुप्त। दिना=दिना=दिन । सोवणा=सोवना= सोना । पसारि= पसार फैलाकर ।

कबीर सूता क्या करै, काहे न देखै जागि ।
जाका संग तै वीछुड़या, ताही के संग लागि।।१२॥

सन्दर्भ—कबीर ने प्रस्तुत परिच्छेद की द्शम साखो मे कहा है "कबीर निरभै राम जी, जब लग दीवै वाति। तेल घटया बाति बुझी, (तव) सोवेगा दिन राति।" "सोवेगा दिन राति" चेतावनी प्रस्तुत करने के बाद प्रस्तुत साखी मे कवि ने अज्ञान निशा मे प्रस्तुत, माया मे सलग्न मानव को कतंव्य पथ से विमुख प्रारगी से जाग्रत होकर कर्तव्य पध को देखने का आगृह किया है।

भावार्थ—कबीर कहते है कि प्रणी! तू सोया हुआ क्या कर रहा है। जाग्रत होकर क्यो नही देखता है। जिसके साहचर्य ए॓ तू विमुक्त हुआ है, उसी के संग पुन: जा लग।

विशेष—(१) प्रस्तुत साखी मे कवि ने कर्तव्य एवं नाम जप से विमुख निंदा से अभिभुत है प्राणियो को ज्ञान के नेत्र उद्घाटित करने के लिए आग्रह पूर्ण उपदेश दिया है।(२) 'सुता' से तात्पर्य है अज्ञान निशा मे, माया से परिवेप्ठित सोया हुआ था। चेतनाविहीन यहा 'सुता' शब्द का प्रयोग चेतना वहीन या निश्चेष्ट के लिये अधिक उपर्युक्त प्रतीत होता है। (३)'काहे न जागि' से तात्पर्य है कि प्रबुद्ध होकर ज्ञान के क्षेत्रो से या संचेत होकर क्यो नहीं विवेक पुण कार्य मे सलाग्न होता है।(४) जाकाॱॱ बीछुछ्था' से तात्पर्य है कि जिसके सम्पर्क से तू वियुक्त हुआ है। आत्मा परमात्मा से विमुक्त हो कर माया के द्वारा पथ-भ्रषट कर दी गई है। इसी भाव की अभिव्यक्ति एक साखी मे कबीर ने कहा है 'पुत पियारी पीना पि' गौहनि लागा घाइ। लोग मिठाई हाथि दे,अपर गया भुलाई।' माया कवि मिठाई पाकर आत्मरूपी बालक अपने पिता को बिसर गया। (५)'ताही प मग सागि' से तात्पर्य है कि कवि के साथ लगकर एकाकार हो जा। एक साथ