पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सुमिरन कौ अग ]
[८१
 

मे इसी स्थिति का वर्णन करते हुए कबीर ने कहा है 'पानी ही थै हिम मय हिम ह्वै गया विलाय। जो कुछ था सोइ भया अब कुछ कहा न जाय।'

शब्दार्थ—सूना= सोता= सोया= सुप्त । जागि = जागकर । जाका = जिसका । तै = तै । बीछुड़या = बिछड़ा । ताही = उसी लागि = लाग = लग।

कबीर सूता क्या करै, उठि न रोवै दुक्ख ।
जाका बासा गोर मैं, सो क्यू सौवै सुक्ख ॥१३॥

सन्दर्भ—नाम जप से विमुख प्राणी को सचेत करते हुए कवि ने विगन साखी मे कहा है कि ' कबीर सूता क्या करै काहे न देखै जागि' तथा ' कबीर सूना क्या करै जागि न जापै मुरारि । ' परन्तु यहा पर कवि ने कहा है ' उठि न रोवै दुक्ख । ' जिसका कदम कब्र मे रखा है, वह सुख से कैसै सो सकता है।

भावार्थ— कबीर दास कहते है कि हे प्राणी ! तू अज्ञान निशा मे पड़ा हुआ क्यो सो रहा है । तू उठकर अपने प्रिय के वियोग मे जो दु:ख का अनुभव हो रहा है उसके प्रति क्यो नहि खेद प्रकट करता। जिसका निवास स्थान कब्र है, वह सुख पूर्वक कैसे सोता है।

विशेष — विगत साखी मे कबीर ने कहा है 'जाकि मग तै बीछुडया ताही कि संग लागि।' प्रियतम से वियुक्त मानव को अपने दु:खो के प्रति खेद प्रकट करना चाहिए। प्रियतम से वियोग होने का दु:ख सर्वत: महान विपत्ति है। परन्तु मानव उस दु:ख को भूलकर माया के आवरण मे अनुरुक्त रहता है। लोभ की मिठाई के पाते ही वह अपने आप को भूल जाता है। कबीर इस प्रकार मे अज्ञान निशा मे आत्म विस्मृत प्राणियो को संचेत करते हुए कर्तव्य पूर्ति की ओर उनमुक्त रहने का उपदेश दिया है। (२) 'जाका ॱॱॱ सुक्ख' से कबीर का तात्पर्य है कि जो मरण्शील है, जिसका निवास स्थान कब्र है। वह सुख पूर्वक कही पर भी हो सकता है।

शब्दार्थ— वासा = निवास स्थान । गोर = कब्र । नै = ने । क्यूं = क्यो ।

कबीर सूता क्या करै,ॱ गुण गोविन्द के गाइ ।
तेरे सिर परि जम खड़ा, खरचघ करे का खाई ॥ १४ ॥

सन्दर्भ—प्रसतुत साखी मे कबीर ने साधन मे विमुक्त प्राणियो को चेतावनी देते हुए यम का स्मरण दिलाया है जो किसी भी दशा मे किसी प्राणी का नही होता है, और गर्व पर माल का प्रहार करता है।

भावार्थ—कबीर कहते है कि हे प्राणी ! तू साधन की निद्रा मे पड़ा क्या कर रहा है। यम तेरे सर पर खड़ा है। तेरे सहारे गर्व करने सा हुआ है।