पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सुमिरन कौ अंग]
[६६
 

प्राणगान्त हो जाने पर पछताने का का कौन सा अवसर है? मृत हो जाने पर संज्ञा विहीन होने पर पछताना शेष रहेगा? इस शंका का समाधान इस प्रकार हो सकता कि यह जीवन माया मे सलग्न रहकर, पथ भ्रष्ट होकर, लक्ष्य विहीन हो जायेगा और पंचतत्व को प्राप्त होकर पुनः जन्म-मरण के क्रम मे निवध्द होगा, एक बार सत्यता पूर्वक ब्रह्म का स्मरण करने पर मानव ब्रह्माकार हो जाता है। परन्तु इसके विपरीत माया मे सलग्न रहने के कारण वह दूसरे जन्म मे भी पश्चाताप की अग्नि मे प्रदग्ध होता रहता है।

शब्दार्थ — लूटियौ = लूटिये। पीछै= मृत्य के अनन्तर। दूसरा जन्म धारनण करने पर।

लूटि सकै तौ लूटियौ, राम नाम भंडार।
काल कंठ तै गहैगा, रुंधै दसू दुवार॥ २६ ॥

संदर्भ — प्रस्तुत साखी मे कबीर ने काल को प्रबलता, मानव जीवन की क्षण भंगुरता, मानव की विवशता और राम नाम की सुलभता की ओर संकेत करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से मानव समाज को चेतावनी प्रदान की हैं।

भावार्थ — राम नाम का भण्डार विद्यमान है। उसे लूट सके तो लूट ले। अन्यथा काल कण्ठ से पकड़ लेगा और दसो द्वार रुध देगा।

विशेष — विगत साखी मे कवि ने चेतावनी देते हुए कहा है पीछे ही पछिता हुगे यह तन जैहै छूटि और इस साखी मे उसी भाव की अधिक प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ 'काल कठ तै गहैगा, रुधै दसू छुवार' के रूप मे प्रस्तुत किया है। (२) कवि ने राम नाम भण्डार का उल्लेख करके राम नाम को प्रचुरता और सुलभता का उल्लेख किया है। राम नाम की सहश सुलभ और प्रभावशाली अन्य तत्व नही है इसीलिए उसने प्रस्तुत परिच्छेद को तेइसवीं साखी मे आदेशात्मक उपदेश दिया है कि 'कबीर आपण राम कहि औरू' राम कहाई। जिंहि मुख राम न आरे, तिहि मुख फेरि कहाइ।' राम नाम से विमुख प्रणियों के लिए कवि ने कहा है 'ते नर उस संसार मे उपजि पये वेकाम।'(३) बाल कट तै गहैगा से तात्पर्य है कि काल कण्ठ से ही पकड कर मृत्यु के मुख मे डाल देगा। (४) रंधै दसू दौवार का तात्पर्य है काल दसो द्वार लयरुद कर देगा। दस द्वार है यहा रन्ध्र, कर्म, नेप, नासिका, मुख, गुदा, शिस्तेन्द्रीय।

शब्दार्थ—गहैगा= पकड़ेगा। रुंधै= अवसद करेगा। दसू= देखो। दुवार= द्वार।