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[कबीर की साखी
 

 

लंबा मारग दूरि घर, विकट पंथ बहु मार ।
कहौ संतौ कू पाइये, दुर्लभ हरि दीदार ॥ २७ ।।

संदर्भ— प्रियतमा का प्रदेश बहुत दूर है । वहा का मार्ग अत्यन्त लम्बा

और भांति-भांति की बाधाओ से सम्पन्न है । ऐसी स्थिति से प्रियतम के दुर्लभ दीदार कैसे प्रास होगे ?

भावार्थ—मार्ग लम्बा है, घर दूर पर है, विकट पथ है और अनेक प्रकार के आघात है । हे संतजन ! फिर हरि के दुर्लंभ दीदार कैसे प्राप्त होगे ।

विशेष—, १ ) प्रस्तुत साखी से कवि ने प्रियतम के प्रदेश की दूरी तथा हरि के दर्शनों की दुलंभता का उल्लेख किया है । अथर्ववेद से उसकी सर्वत्र विदधॄयमानता सम्बन्ध मे कहा गया है । ओइम् । यस्तिष्ठति चरति यच्चवच्चति यो निलायं चरति: य: प्रतडूम । दौ सनिनवध्य यन्मन्त्रयेते राजा तदेव वरुणस्तुर्ताय: । उस प्रियतम का प्रदेश कवि ने दूर माना है । ब्रह्म सर्वत्र विधयमान होते हुए भी निकट है । वह ज्ञान चक्षु के द्वारा दृष्टिगत होता हे । अन्यथा वह दूर हो है । (२) उसको प्राप्त करने का मार्ग (साधना) बड़ा लम्बा है । (३) 'विकट पंथ' ' 'मार' से तात्पर्य है साधना का मार्ग अनेक बिधून-बधाओ से सम्पन्न है । माया, तृष्ण, लोभ, काम आधि साधक को उस मार्ग पर गतिशील नही होने देते हैं । (४) दुर्लभ हरि दीदार" से तात्पर्य है प्रियतम के दर्शन साधना, संयम तथा शाक्ति के विना सम्भव नहीं है ।

शब्दार्थ— मऱरग= मार्ग, रास्ता । विकट - कठिन । मार - आघात । दीदार - दर्शन ।

गुण गायें गुण नाम कटै, रटै न राम वियोग ।
अह निसि हरि ध्यावै नहीं, क्या पावै दुर्लभ जोग ।।२८।।

संदर्भ-प्रसतुत साखी मे कबीर ने राम नाम के महत्व का पुन: उल्लेख किया है । राम नाम का प्रभाव वहा व्यापक और असाधारण है । नाम जप के प्रभाव से मध्या के वचनं विच्छिन्न हो जाते । फिर भी मानव इस पुण्य कर्तव्य से विमुख है ।

भावार्थ— राम नाम का गान करने से माया का पाश विरिछंन हो जाते हैं । फिर भी (मानव) राम के वियोग में नाम जप नहीं करना है । जव रात दिन हरि का ध्यान नही करेगा, तव फिर दुर्लभ अनन्त योग कैसे प्राप्त होगा ।

विशेष—(१) प्रस्तुत साखी में कबीर ने 'गुण' शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया है प्रथम गुण या अर्थ है हरीनाम के गुण या विशेष ना और द्वितीय स्थान पर 'गुण' शब्द का प्रयोग माया के पास के हेतु । हुआ है (२) गुण......कटे"