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सुमिरन को अग]
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अशिक्षित कवि कबीर की काव्य प्रतिभा के दर्शन होते हैं। प्रस्तुत पंक्ति से कबीर साहित्य में प्रयुक्त अलंकारों के सहज-रूप के दर्शन होते हैं। सहज अभिव्यक्ति के साथ सहज रूप में अलंकारों का प्रयोग कबीर की विशेषता है। (३) रटे...वियोग से तात्पर्य है राम के वियोग में नाम-जप नहीं करता है। इसी प्रकार प्रस्तुत परिच्छेद की बारहवीं साखी में कवि ने लिखा है "काहे न देखै जागि" और ग्यारहवीं साखी में भी इसी प्रकार कवि ने लिखा है "जागि न जपे मुरारी। (४) अह निमि हरि ध्यावैं नहीं' से तात्पर्य है रात दिन हरि के नाम का जप नहीं करता है। रात दिन के नाम-जप के विषय में कबीर ने बारम्बार उपदेश दिया है। प्रस्तुत परिच्छेद की १६ वीं साखी में कबीर ने इसी प्रकार लिखा है" राति दिवस कै कूकर्मौं (मत) कबहूँ लगै पुकार" (५) 'दुर्लभ जोग' ब्रह्म के साथ दुर्लभ योग या तादात्म्य संस्थापना। ब्रह्म स्वतः दुर्लभ है और उसके साथ योग सत्यापन और भी दुर्लभ है। यहाँ पर कवि ने इसी भाव की ओर संकेत किया है यजुर्वेद में उस ब्रह्म को सर्व व्यापकता के सम्बन्ध में कहा गया है 'सः क्षोतः प्रोतश्च विभुः प्रजासु'। फिर भी वह दुर्लभ उन लोगों के लिए है जो माया-से परिवैष्ठित ही है। (६) सम्पूर्ण साखी में कवि ने नाम-जप के कर्त्तव्य से विमुख प्राणियों को सचेत करने को चेष्ठा को है।

शब्दार्थ—वियोग = वियोग। अह निसि = अहर्निश-दिनरात। दुर्लभ = दुर्लभ।

कबीर कठिनाई खरी सुमिरतां हरि नाम।
सूली ऊपरि नट विद्या, गिरूं त नहीं ठाम॥२९॥

संदर्भ—प्रस्तुत साखी में कबीर के नाम जप या साधन को दुरुहता की ओर संकेत किया है। साधना का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम और दुःसाध्य है यथा शूली पर नट की कला का प्रदर्शन कठिन शूली के ऊपर अपनी कला का प्रदर्शन करने वाला नट लेशमात्र भी असावधान होते ही धराशायी हो जाता है उसी प्रकार साधक अपने से भ्रष्ट होते ही कही पर भी नहीं स्थान पाता है।

भावार्थ—कबीर कहते हैं कि हरि नाम के स्मरण में अनेक कठिनाइयाँ है। यथा शूली के ऊपर नट अपनी कला का प्रदर्शन करता हुआ जब गिरता है तो उसके लिए कोई स्थान नहीं रहता है।

विशेष—प्रस्तुत साखी में की कवि ने साधक तथा नट की तुलना की है साधना में साधक और कला के प्रदर्शन में एकाग्रता अत्याधिक अनिवार्य और संदिग्ध होता है। एकाग्रता विनष्ट होते ही दोनों ही रूपवंचित हो जाते हैं। योग से पवित्र भोगी और शूली पर से पवित्र नट प्राण रहित हो जाता है। इसीलिए कबीर ने