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सुमिरन कौ अग]
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  सन्दर्भ -अमृत के सदृश मधूर एवं कल्याण्कारी रामनाम के रस को जिह्वा पर धारण करके मनुष्य के लिए यह उपयोगी है कि वह राम को रिझा ले तथा फूटे हुए नग को कोने से कोना मिला कर जोड़ लिया जाता है,उसी प्रकार इस मन को उस मन से जोड़ने का यत्न करना चाहिए।

भावार्थ -कबीर दास काहते हैं कि मुख से अमृत तत्व पर ब्रह्य का गुण-गान करके उसे अपने प्रति आकर्षित कर ले । तथा फूटे हुए नग को कोने से कोना मिला कर जोड़ा जाता है, उसी प्रकार मन को ब्रह्य से जोड़ ले।

विशेष-(१)कबीर जनता के कवि हैं । उन्होने जनमाधारख मे प्रचलित उक्तियो और अप्रस्तुत् योजना को लेकर अत्यन्त महत्वपूर्ण तथ्यों को व्यक्त करने को चेष्टा मे आशतीत सफलता प्राप्त की है फूटा नग ज्यूं , जोड़ी मन सधे माधि मिलाइ"मे यह प्रयुक्त अप्रस्तुत योजना सहज होनो के साथ ही साथ औचित्यपूर्ण भी है।(२)फूटे हूए नग को जोड़ने की प्रक्रिया एकाग्रता तथा कौशल को अपेक्षा करती हे । उसी प्रकार ब्रह्य से वियुक्त मन को कौशल एवं एकाग्रता के साथ जोड़ना आवश्यक है।(३)"राम रिझाइ लै वारम्वार प्रार्थना एवं नाम जप के द्वारा ब्रह्म को अपने प्रति आकर्षित एवं प्रसन्न कर ले । सेवा के द्वारा प्रियतम प्रबल को अपने प्रति रिझा लेना चाहिए।(४)मुखि...गाइ से तात्पर्य है मुख ने अमृत तत्व अथार्त ब्रह्य के गुणो का गान कर ले अमृत का अर्थ वह ब्र्ह्य जो अजर अमर अनादि और अन्त है।

शब्दार्थ-रिभ्ताई=प्रसन्न । लै=ले मुखि =मख,मुह । अमृत=अमर । गाइ=गान कर । मघे=सधि ।

कबीर चित चमॅकिया,घहॅ ढिसी नागी लाइ ।
हाथु घडा,वेग लेहु वुक्ताई ॥ ३२ ॥

सन्दर्भ—वासना तृणा और माया की अग्नि या दाह ने मन की एकाग्रता को विनिष्ट कर दिए है यह दाह,सताप या पीटा तभि विनष्ट हो जाती है जब हरिनाम पीतल जल को ग्रहण करके उसे फरने को चेष्टा मे मानव अनुभात्न और दतघित हो ।

भावार्थ-कबीर कहते है कि माया(या वनाना या तृष्णा)वो अग्नि हरिरम की दुआ हओ।हमसे द्वार भगवान को पूजा-पिट करना हो ।

विशेष-(१)भग्वन् को प्रसाद् करने के लिये अछि काम करना पडता है । उस के लिए अछि परिवार ने हम को सहायता देती है।