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[कबीर की साखी
 

जीवन में घटित करने का प्रयत्न किया है वासनाओं और माया द्वारा प्रदग्ध अग्नि को नाम सुमिरण के जल के द्वारा ही प्रशान्त किया जा सकता है कबीर ने यहाँ पर अत्यन्त सुलभ उक्ति के द्वारा आध्यात्मिक जगत के भाव को प्रभावशाली बनने की चेष्ठा की है। (२) कबीर...लाइ से तात्पर्य है कि वासना की अग्नि चारों दिशाओं, सर्वत्र लगी है और उसके प्रभाव से मन चमत्कृत हो उठा है संसार के सर्वत्र माया की अग्नि प्रज्वलित है। और मन उसमें रमा हुआ था अत्त्यन्त अनुरक्त है। (३) वेगे लेहु बुझाइ-शीघ्र ही इस अग्नि बुझा लो। कबीर ने यहाँ वेगे शब्द का प्रयोग किया है। क्षणभङ्गुर जीवन किसी पल विनष्ट हो सकता हैं। अतः मानव के लिए यह आवश्यक है कि अत्यन्त शीघ्रता के साथ जीवन की बिगड़े क्रम में सुधार के करले। (४) हरि...घड़ा से तात्पर्य है कि हरि नाम रूपी जल का घड़ा हाथ में है।

शब्दार्थ—चमकिया = चमत्कृत। चहुँ = चारों। दिसि = दिशा। लाइ = ज्वाला, अग्नि। हाथू = हाथों में। वेगे = शीघ्र ही। लेहु = लो। बुझाइ बुझा।

 

३. विरह कौ अंग

रात्यू रूंनी बिरहिनीं, ज्यूं बंचौ कूं कुंज।
कबीर अंतर प्रजल्या, प्रगठ्या विरहा पुंज॥१॥

सन्दर्भ—क्रौंच पक्षी का विरह जगत प्रसिद्ध है। उसी प्रकार विरहिरनी आत्मा प्रियतम के वियोग में जीवन निशा या विरह निशा भर रुदन करती रही। साधना अन्तस में जब से विरह की भावना उद्दीप्त हुई तब से समस्त कलुष दूर हो गए।

भावार्थ—रात भर विरहिणी रोई यथा क्रौंच पक्षी अपने बच्चों के लिए रोती है। कबीर कहते हैं कि विरह के प्रज्वलित होने पर अंतर प्रज्वलित हो गया।

विशेष—(१) प्रस्तुत साखी में कवि ने विरही साधक तथा क्रौंच की परिस्थिति और विरहानुभूति में साम्य उपस्थित करते हुए दोनों के विषाद का उल्लेख किया है। विरही आत्मा और क्रौंच दोनों प्रिय के वियोग में अत्यन्त व्याकुल रहते है। विरहनिशा भर आत्मा शिव के हेतु रुदन करती रही उसी प्रकार क्रौंच पक्षी की परिस्थिति है। (२) "रात्यू" से तात्पर्य रात भर। यहाँ पर "रात" का प्रयोग कवि ने उसी अर्थ में किया है जिस अर्थ में पाश्चात्य रहस्यवादियों ने "डार्क नाइट"