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[कबीर की साखी
 

 

नैनां नीझर लाइया,रहट बहै निस जाम।
पपीहा ज्यूँ पिव पिव करौं,कबरु मिलहुगे राम ॥२४॥

सन्दर्भ— विरह के काररग नेत्रो से अश्र निरतर प्रवाहित रहते है ओर प्रारग पपीहे के सहश प्रिय का नाम रटते रहते है।

भावार्थ - प्रिय के वियोग मे नेत्रो से आँसू-निर्भर दिनरात प्रवाहित रह्ते है और प्राण पपीहे के सदृश प्रिय का नाम रटते हैं । हे प्रिय कत्ब मिलोगे ।

शब्दार्य—नीझर =निझर= झरना । रहट = कुआं जल निकालने का यंत्र । निसजाम= निशयाम । कवरु = अरे कब ।

आपडिंयां प्रेम कसाइयां, लोग जांरगौ दुखडि़याँ ।
साँईं अपणै, कारणौ, रोइ रोइ रतडि़याँ ॥ २५ ॥

सन्दर्भ— प्रिय के वियोग मे रूदन करते करते नेत्र आरक्त हो गए हैं ।

भावार्थ— नेत्र प्रेम-विरहाग्नि मे सतप्त होने के कारण लाल हो गए । स्वामी के वियोग के कारण रो रोकर लाल हो गए हैं और लोग जानते हैँ नेत्र दुख रहे हैं ।

शब्दार्थ - अपडिया = अंखडिग्रा = आँखें । कसाइया = कसी गई है । दुखाइयाँ = दुख रही है । रतडियाँ = लाल हो गई है ।

सोइ आंसू सजरणां सोई लोक बिड़ँहि ।
जे लोइगा लोंहीं चुवै,तौ जारणौ हेत हियाँहि ॥ २६ ॥

संदर्भ— आँसु आँसु मे भेद है । वही सच्चे आँसू है जो हृदय से प्रस्फुटित होते हैं ।

कबीर हसणां दूरि करि, करि रोवण सै चित्त ।
बिन रोयां क्यूँ पाइए, प्रेम पीयारा मित्त ॥ २७ ॥

सन्दर्भ—विरहानुभुति का अनुभव किए बिना प्रिय किसे प्राप्त हुआ है ।

भावार्थ—कबीर कहते है कि हे प्राणी लोकिक-भौतिक सुखो का परित्याग करके, विरहानुमूति हृदयगत करके प्रिय के विरह मे प्रिय के हेतु रुद्न कर । बिना रुदन किए कहि प्रिय प्राप्त होते हैं ।

शब्दार्थ— हसरणा = हसना । रोवण= रोवन = रोने। सौ = मे । नित चित्त लगा । रोया = रोये । क्यूँ=क्या । मित्त = मित्र ।

जो रोऊँ वौ बल घटै, हँसौ तोव राम रिसाइ।
मनही मांहि विसूरणां, क्यूँ घूँरग काठहि खाइ ॥ २८