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[कबीर की साखी
 

 

शब्दार्थ—सूर= सूर्य। चन्द्र= चन्द्र्मा। दहू=दोनो ने। च्यन्ता=चिन्ता

हद छाड़ि बेहद गया, किया सुन्नि असनान।
सुन जन महल न पावई, तहा किया विश्राम॥

सन्दर्भ—निर्गुण निराकार ब्रहा के दर्शन करके शुन्य शिखर गढ मे प्रवेश किया।

भावार्थ श—संसार को सीमित दिशाओ का परिव्याम करके निःसीम ब्रहा मे प्रवेश किया। जिस निगुंरग ब्रहा के अतःपुर मे मुनिजन भी प्रवेश नही कर सक्ते है, वहा मैने विश्राम किया।

शब्दार्थ—हद=सीमा सुन्नी=शून्य असनान=अस्नान तहा=वहा विश्राम= आराम।

देखो कर्म कबीर का, कछु पूरव जनम क खेल।
जाका महल न मुनि लहै,सो दोसत किया आलेख॥

सन्दर्भ—पूर्वजन्म के फल और इस जन्म की साधना के फल। कबीर ब्रह्म से मिलकर अभिन्न हो गए।

भावार्थ—कबीर के कर्म,कृत्य,भाग्य और पूर्वजन्म को साधनात्मक चपलव्धि तो देखो, कि जिस ब्रहा के महल मे मुनि जन प्रवेश नही कर पाते है, उस ब्रह्मा को उसने अभिन्न बना लिया।

शब्दार्थ—कर्म=भाग्य,कृत्य। पूरव=पूर्व। जनम=जन्म। जाका=जिसक दिसत=दिस्त। श्रलेख=अनियंचनीय।

पिंजर प्रेम प्रकासिया,जाग्या जोग अनंत।
संसा खूदा सुख भया, मिल्या पियारा कंत॥

सन्दर्भ—प्रेम के जागृत होते ही अनन्त योग जाग्रत हो गया और संगय मिट गया, ब्रह्मा के साथ अभिन्नता स्थापित हो गई।

भावार्थ—शरीर मे प्रेम के जाग्रत होते ही अनंत प्रेम,ओर अनन सम्बन्ध प्रकट हो गया इस प्रकार संगम मिट गया और प्रिय से एकात्मकता स्थापित हो गया ।

शब्दार्थ—पिंजर=घरीर।प्रकासिया=प्रकाघिन घुप्रा।जाग्या=जगा शाघ हुवा।जोग=पोग एगत्मवा। अनंत=प्रमोम। संसा=मयप।मूह=नष्ट हुवा।पियारा=प्यारा=प्रेम।