पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२८]
[कबीर की साखी
 

 

भावार्थ-कबीर दास कहते हैं कि जब से प्रभु के प्रत्यक्ष दर्शन् हुए तब से हृदय मे शन्ति का साम्राज्य स्थापित हो गाया और समस्त पाप सहज रूप से विनष्ट हो गए ।

शब्दार्थ-सचुपाया=शांति प्राप्त की। ऊपना=उत्पन्न हुआ।

धरती गगन पवन नहीं होता, नहीं तोया, नहीं तारा।
तब हरि हरि के जन होते, कहै कबीर विचार॥२७॥

सन्दर्भ-हरि और हरिजन शाश्वत है।

भावार्थ-धरती गगन पवन, सूर्य जल न होते और यह सृष्टि भी न होती तोभी प्रभु और उनके भक्त इस संसार में अवश्य होते।

शब्दार्थ-तोया=पानी।

जा दिन कृतमनां हुता, होता हट न पट।
हुता कबीरा राम जन, देखै औघट घट॥ २८ ।।

सन्दर्भ-राम और उनके भक्त शाश्वत है।

भावार्थ- जिस दिन यह संसार न होता हाट और वस्त्र न होते, सांसारिक व्यापार न होते कबीर कहते हैं कि उस दिन भी राम और राम के भक्त इस संसार में होते।

शब्दार्थ- कृतम=कृत्रिम

थिति पाई मन थिर भया, सतगुरु करी सहाइ।
अनिन कथा तनि आचरी, हिरदै त्रिभुवन राइ॥२६॥

सन्दर्भ-जब से हरि को कथा का ध्यान किया तब से समस्त ताप नष्ट हो गए।

भावार्थ-सदगुरु की कृपा से मन स्थिर हो गया और हरि की यज्ञगाथा की साधना मे मन अनुरक्त हो गया, तब से हृदय मे भगवान के दर्शन हुए।

शब्दार्थ-थिति=शांति। अमिन=अनन्य।

हरि संगति सीतल भया, मिटी मोह की ताप।
निस बासुरि सुख निध्य लह्या, जब अतरि प्रगट्या आप॥३०॥

सन्दर्भ-प्रभु की शरण मे जाने से समस्त पाप नष्ट हो गए।

भावार्थ-हरि के शरण मे जाते ही समस्त पाप विनष्ट हो गए। मोह की ज्वाला शान्त हो गाई जब से ब्रह्मा के दर्शन हुए तब से दिन-रात सुख की निधि प्राप्त हो गई।