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[कबीर की साखी
 

शब्दार्थ―माँड़े बहुत मँडाण=बडे ठाट-बाट बाँध दिए। उभा=खड़ा। मेल्हि गया=नष्ट हो गया।

इक दिन ऐसा होइगा, सब सूँ पड़ै विछोह।
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ॥६॥

सन्दर्भ―संसार से वियोग अवश्यंभावी है इसलिए पहले ही व्यक्ति को सावधान हो जाना चाहिए।

भावार्थ―एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब कि मनुष्य का सभी से वियोग हो जायेगा। अतएव हे राजाओ। हे छत्र को धारण करने वालो। आप लोग आज ही सावधान क्यो नही हो जाते। ताकि बाद मे पश्चाताप न करना पडे।

शब्दार्थ―किन=क्यो नही।

कबीर पटण कारिवाँ, पांच चोर दस द्वार।
जय राँणों गढ़ भेलिसी, सुमिरि लै करतार॥७॥

संदर्भ―साग रूपक के द्वारा शरीर पर यमराज के आक्रमरण को स्पष्ट किया गया है।

भावार्थ―कबीरदास जी का कहना है कि यह शरीर रजी सार्थवाह है जो आत्मा रूपी धन को लेकर चल रहा है। इसके साथ पाच चोर (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) उस धन को चुराने के लिए चल रहे हैं। दस छिद्रो ( ५ कर्मेन्द्रियाँ और ५ ज्ञानेन्द्रियाँ) के होने के कारण इस शरीर रूपी कारवाँ की दशा और भी शोचनीय हो रही है यमराज इस दुर्गं को नष्ट करने के लिए इस पर आक्रमरण अवश्य करेगा अतः ईश्वर का स्मरण करना चाहिए तभी रक्षा हो सकती है।

शब्दार्थ―पाटण-नगर, शरीर। कारिवाँ=कारवाँ, सार्थवाह। पच चोर=काम क्रोध, मद, लोभ, मोह। दसद्वार=दस छिद्र (दस इन्द्रिया=५ कर्मेन्द्रियाँ,५ ज्ञानेन्द्रियाँ। जमरा=यमराज। भेलिसी= नष्ट करेगा।

कबीर कहा गरबियों, इस जीवन की आस।
टेसू फूले दिवस चारि, खंखर अये पलास॥८॥

संदर्भ―क्षरण भंगुर जीवन में अभिमान नहीं करना चाहिए।

भावार्थ―कवीरदास जी कहते हैं कि इस नश्वर शरीर और जीवन की आशा मे मनुष्य को घमण्ड करना चाहिए। जिस प्रकार पलाश के वृक्ष मे चार दिन के लिए अर्थात् थोड़े समय के लिए टेसू (पलाश के फूल) आ जाते हैं वह हरा-