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[कबीर की साखी
 

संदर्भ―मृत्यु एक न एक दिन सभी को नष्ट कर देती है अतः मनुष्य की गर्व नही करना चाहिए।

भावार्थ―कबीर कहते हैं कि हे जीव तेरे बालो को मृत्यु अपने हाथो मे पकड़े हुए है फिर भी तू व्यर्थं मे गवँ क्यो करता है। यह भी पता नहीं कि वह मृत्यु तुझे घर मे या परदेश मे कहाँ मारेगी।

यहु ऐसा संसार है, जैसा सैंबल फूल।
दिन दस के व्यौहारको झूठै रंगि न भूलि॥१३॥

सन्दर्भ – सेमर की फूल की भाँति इस नश्वर संसार पर गर्व करना उचित नही है।

भावार्थ—कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार उसी प्रकार है जिस प्रकार सेमर के फूल। सेमर का फूल ऊपर से ही आकर्षक होता है भीतर उसमे कोई तत्व नही होता है। इस थोड़े दिन के जीवन मे इसके झूठे दिखावे मे मनुष्य को अपनी वास्तविकता को नहीं भूल जाना चाहिए।

शब्दार्थ—सैंवल=सेमर का पुष्प। झूठै रगि=झूठे आकर्षण। विशेष= उपमा अलंकार।

जांमण मरण विचारि करि, कूड़े कांम निबारि।
जिनि पँथूँ तुझ चालणं, सोई पंथ सॅवारि॥१४॥

संदर्भ―वासना प्रेरित कुमार्ग को छोड़कर मनुष्य को सुमार्ग को अपनाना चाहिए।

भावार्थ—कबीरदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य! तू जीवन मरण (आवागमन) को गम्भीरतापूर्वक विचार कर वासना जन्य कुकर्मों का परित्याग कर दे। जिस प्रभु-भक्ति के मार्ग पर तुझे अंततः चलना है तू उसे अभी से अपना ले।

शब्दार्थ―जामण=जन्म। कूडे-बुरे। चाल=चलना है। सँवारि=संभाल ले।

विन रखवाले वाहिरा, चिड़ियै खाया खेत।
आधा प्रधा ऊवरै, चेति सकै तो चेति॥१५॥

सन्दर्भ―जीव को सावधानी से मोक्ष-प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।

भावार्थ―हे मनुष्य! सतगुरु रूपी रक्षक के अभाव मे तेरे मोक्ष रूपी खेत को कुछ तो काम क्रोधादि रूपी पाँच चोरो ने उडा लिया और कुछ वासना रूपी