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[कबीर की साखी
 

संदर्भ―मनुष्य को अपनी शक्ति संसार के व्यर्थं कार्यों मे नष्ट न कर प्रभु भक्ति मे ध्यान लगाना चाहिए।

भावार्थ―हे जीवात्मा! तूने राम नाम के तत्व को नहीं जाना और इस प्रकार जड़ से हो बात को बिगाड़ दिया। व्यर्थं के सासारिक धन्धो मे तू यहाँ पर ईश्वर को ही हार गया अब मरने के अवसर पर तेरे मुख मे धूलि के अतिरिक्त और क्या हो सकता है?

शब्दार्थ—विनेटी=नष्ट कर दी।

राम नाम जाण्याँ नहीं, पाल्यो कटक कुटुम्ब।
धन्धा ही में मरि गया, बाहर हुई न बम्ब॥३३॥

सन्दर्भ―सासारिक झझटो मे जीवन का अन्त हो जाता है किन्तु अहंकार के कारण राम नाम का स्मरण नहीं हो पाता है।

भावार्थ—हे जीवात्मा! तुमने राम नाम का स्मरण नहीं किया। सेना के समान छपने कुटुम्ब के पालन मे ही ‘जूझता रहा। इस प्रकार सांसारिक झझटो मे उलझते हुए जीवन का अंत हो गया किन्तु अहंकार से मुक्ति फिर भी न मिली।

शब्दार्थ―कटक=सेना। बंब=नगाड़ा, यहाँ अहं से तात्पर्य है।

मनिषा जनम दुर्लभ है, देह न बांरम्बार।
तरवर थै फल झड़ि पड़्या, बहुरि न लागै डार॥३४॥

सन्दर्भ―मनुष्य का जन्म बार-बार नही प्राप्त होता है।

भावार्थ—कबीर दास जी कहते हैं कि यह मानव जन्म बडी कठिनाई से प्राप्त होता है और यह शरीर बारम्बार नही प्राप्त होता है। जिस प्रकार एक बार वृक्ष से फल गिर जाने के बाद उसी शाखा में फिर से नहीं लग सकता उसी प्रकार मनुष्य देह भी दुबारा नहीं मिल पाती है।

शब्दार्थ―मनिषा=मानव का।

कबीर हरि की भगति करि, तजि विषिया रस चोज।
बार-बार नहीं पाइये, मनिषा जन्म की मौज॥३५॥

सन्दर्भ―मानव जन्म के बार-बार न मिल पाने के कारण जीव को ईश्वर स्मरण मे समय व्यतीत करना चाहिए।

भावार्थ―कबीर का कहना है कि मानव जन्म-प्राप्ति का सौभाग्य वारम्बार प्राप्त नहीं होता अतः हे जोवात्मा। विषय वासना युक्त माया पूर्ण क्षणिक