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चितावणी कौ अंग]
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भावार्थ―अहंकार बहुत ही भयानक वस्तु है|इसका शीघ्र ही विनाश कर देना चाहिए अन्यथा यह व्यक्ति को ही नष्ट कर देगा। जिस प्रकार रूईमे लिपटी हुई अग्नि कब तक सुरक्षित रह सकती है वह थोडे ही समय मे रूई को भस्मकर बाहर प्रकट हो जाती है उसी प्रकार अहंकार भी कब तक छिपा हुआ रहेगा एक न एक दिन वह प्रकट होवेगा ही।

शब्दार्थ―मै मै=अह। वलाई=वला।

मैं मैं मेरी जिनि करै,मेरी मूल बिनास।
मेरी पग का षैषडा़,मेरी गल की पास॥६१॥

सन्दर्भ―अहंकार मनुष्य का विनाश का मूल कारण है।

भावार्थ―हे जीव तू अहंकार का परित्याग कर दे क्योकि अहंकार आत्मा के विनाश का कारण है। अहं भाव ही जीव के पैरो का बन्धन है और गले मे पढें हुए फाँसी के फन्दे के समान है।

शब्दार्थ-षैषड़ा=बधन। पास=पाश,फासी का फन्दा।

कबीर नाव जरजरी,कूडे खेवणहार।
हलके हलके तिरि गए,बूडे तिनि सिर भार॥६२॥

सन्दर्भ―जो पापो के वोझ से लदे नही होते है है वे ही संसार सागर को पार कर पाते है।

भावार्थ―कबीर दास जो कहते है कि जीवन रूपी नाव अत्यन्त जजंर है जोर उसका खेने वाला नाविक अत्यन्त कूडा है,बेकार है। ऐमी अवस्था मे जो व्यक्ति हल्के है जिनके ऊपर पापो का वोझा कम है वे तो संसार सागर से पार उतर गए और जिनके सर पर पापो का वोझा लदा हुआ था ये उसी भव सागर मे ढ़ूब गए।

शब्दार्थ―कूडे=रदी,बेकार। हलके हलके=शुद्धात्मा वाले।