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माया कौ अंग]
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शब्दार्थ―तर्णा=नीचे। निवर्ति=निवृत्ति। परवर्ति=प्रवृत्ति।

कबीर इस संसार का, झूठा माया मोह।
जिहि घरि जिता बंधावणा, तिहिं घरि तिता ॲदोह॥२८॥

सन्दर्भ―सुख के साथ दुख भी मिला होता है।

भावार्थ—कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार का माया मोह सभी झूठा प्रपंच है। जिस घर में जितनी ही अधिक प्रसन्नता आनन्द-मंगल दिखाई देता है, वहाँ उतना ही अधिक दुख भी होता है।

शाव्दार्थ―बंधावणा=बधन। अन्दोह=दुख।

माया हम सौं यौ कह्या, तू मति दे रे पूठि।
और हमारा हम बलू, गया कबीरा रूठि॥२९॥

सन्दर्भ―आत्मबल वाले व्यक्ति ही माया से सबन्ध विच्छेद कर पाते हैं।

भावार्थ―माया ने हमसे (जीवात्मा से) यो कहा कि तुझ को मत छोड। किन्तु यह हमारा ही आत्मबल है कि मैं (कबीरदास) माया से अप्रसन्न हो गया और उस माया से रूठ गया, अप्रसन्न हो गया।

शब्दार्थ―पूठि=पीठ देना।

बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ़या कलंक।
और पखेरू पी गये, हॅस न बोवैं चंच॥३॥

सन्दर्भ=भक्तजन विषय भोगो मे आसक्त नही होते हैं।

भावार्थ―माया रूपी बगुली ने आत्मा के जल को दूषित कर दिया, इससे संसार रूपी सागर भी कलकित हो गया अन्यपक्षी, सासारिक मनुष्य तो इस विषय वासना के पानी को पी गए किन्तु मुक्तात्माओ (हसो) ने इस जल को छुआ तक नही है।

शब्दार्थ—विटा लिया=समाप्त कर दिया। सायर=सागर। हस=मुक्तात्मा।

कबीर माया जिनि मिलै, सौ बरिया दे बाॅह।
नारद से मुनियर गिले, किसी भरीसौ त्यांह॥३१॥

संदर्भ―माया का कोई भरोसा नही है उसके फन्दे मे नही पडना चाहिए।

भावार्थ―कबीरदास जी कहते हैं कि अगर माया सैकडो प्रलोभन देकर के तुझे फंसाना चाहे तो भी उसके फन्दे मे नही पडना चाहिए। जब इस माया ने