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कामी नर कौ अंग]
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भावार्थ―एक तो सोना अर्थात् धन दूसरे स्त्री को प्राप्त कर लेना विष फल का प्राप्त करना है। इन दोनो के देखने मात्र से ही विष के समान प्रभाव हो जाता है और यदि इनका उपभोग किया जाय तो निश्चय ही मृत्यु आती है।

शब्दार्थ―उपाइ=उत्पन्न करके।

एक कनक अरु कामिनी, दोऊ अगनि की झाल।
देखैं ही तन प्रजलै, परस्यों ह्वै पैमाल॥१२॥

सन्दर्भ—स्त्री और धन का देखना भी भयकर होता है।

भावार्थ―एक सोना अर्थात् धन और दूसरे स्त्री दोनो अग्नि की जलती हुई लपटो के समान हैं। इनको देखने मात्र से ही शरीर प्रज्वलित होने लगता है फिर स्पर्शं करने पर तो कहना ही क्या? तब तो मनुष्य नष्ट हो हो जाता है।

शब्दार्थ―झाल=लपट। पैमाल=नष्ट होना।

कबीर झग की प्रीतड़ी, केते गए गड़ंत।
केते अजहूॅ जाइसी, नरकि हसंत हसंत॥१३॥

सन्दर्भ—एक दूसरे के परिणाम देखकर भी मनुष्य वासना से अलग नहीं होता है।

भावार्थ―कबीर दास जी कहते हैं कि स्त्री के सहवास के सुख के प्रेमी न जाने कितने व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होने के बाद कब्र मे गाड दिये गए किन्तु फिर भी संसार के अवशिष्ट प्राणी आज भी हँसते हँसते उमी नरक को (पतन मार्ग) को जा रहे हैं।

शब्दार्थ―भग=स्त्री सम्भोग।

जोरू जूठणि जगत की, भले बुरे के बीच।
उत्यम ते अलगे रहैं, निकटि रहैं तें नीच॥१४॥

सन्दर्भ―स्त्री से दूर रहने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ और इसके संसर्ग मे रहने वाला नीच होता है।

भावार्थ―स्त्री सांसारिक विषय वासनाओ की बची हुई जूठन है। यह मनुष्य के भले और बुरे का अंतर बताती है। जो इससे अलग रहते हैं वे उत्तम कोटि के व्यक्ति होते हैं और जो इसके निकट रहते हैं वे नीच प्रकृति के होते हैं।

शब्दार्थ—जोरू=पत्नी, नारी। उत्यम=उत्तम=श्रेष्ठ।

नारी कुॅड नरक का, बिरला थंभे बाग।
कोइ साधू जन उबरै, सब जग मूवा लाग॥१५॥