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साँच कौ अंग]
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होते हैं वे भी दुनिया के साथ ही साथ चलते हैं। वे भी जिस समय निरीह पशुओ की हिंसा हेतु कटार अपने हाथ मे उठा लेते हैं।

शब्दार्थ――भ्रमियाँ:=भ्रम ग्रस्त। दुनी=दुनियाँ। दीन=धर्म। करद=कटार।

जोरि करि जिबहै करैं, कहते हैं ज हलाख।
जब दफतर देखैगा दई, तब ह्वैगा कौंण हवाल॥८॥

सन्दर्भ――जीव हिंसा धर्म के प्रतिकूल है।

भावार्थ――कबीरदास जी कहते हैं कि मुसलमान निरीह पशुओं को पकड़कर काटते हैं उस समय कहते हैं कि यह हलाल है धार्मिक विधान के अनुकूल है। किन्तु जब मृत्यु के उपरान्त विधाता के यहाँ कर्मों का हिसाब-किताब होगा उस समय तेरा क्या हाल होगा।

शब्दार्थ――जिवहै=बध। दई=प्रभु।

जोरी कीयां जुलम है, माँगै न्याव खुदाइ।
खालिक दरि खूनी खड़ा, मार मुद्दे मुहिं खाइ॥६॥

सन्दर्भ――किसी व्यक्ति के साथ बल प्रयोग करना अत्याचार है।

भावार्थ――जीव बध मे शक्ति का प्रयोग करना बहुत बडा अपराध है। ईश्वर प्रत्येक प्राणी से न्याय पूर्ण व्यवहार की आशा करता है। यही खूनी व्यक्ति जिस समय परमात्मा के दरबार मे खडा होगा उस समय उसके मुंह पर अनवरत प्रहार किए जाएगे और उसे उतना ही कष्ट दिया जायगा जितना वह दूसरो को दे चुका है।

शब्दार्थ――खालिक=ईश्वर। दरि=द्वार।

सांई सेती चोरियाँ, चोरां सेती गुझ।
जांणैगा रे जीवड़ा, मार पड़ैगी तुझ॥१०॥

सन्दर्भ――ईश्वर से चोरी करना अक्षम्य अपराध है।

भावार्थ――ऐ जीव! तू परमात्मा से तो चोरी करता है और काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह आदि चोरी से तू मित्रता रखता है। हे जीव! जब तेरे इस आचरण पर परमात्मा तुझे दण्ड देगा तब तुझे अपने कपट पूर्ण व्यवहार का अनुमान होगा।

शब्दार्थ――गुझ=मित्रता। जीवडा=जीवात्मा।

क० सा० फा०-१४