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कबीर-व्यक्तित्व


किसी भी साहित्याकार का व्यक्तित्व उसकी रचना मे प्रतिबिम्बित होता है। लेखक के व्यक्तित्व से उसके साहित्य का बड़ा ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। कोइ भी मनुष्य किसी रचना से उसके लेखक के व्यक्तित्व का अनुमान लगा सकता है। कबीर (२५ वी शताब्दी ) का साहित्य उनके व्यक्तित्व का सबसे अधिक परिचायक है। कबीर के साहित्य को देखने से ज्ञात होता है कि वे सत्य (दोनो, व्यवहार और साधना ) प्रिय थे। उनमे चरित्रबल था जिसके कारण स्पष्टोक्तियाँ उनकी वानियो मे लहरे ले रही हैं। वे मान और उपमान के स्तर से ऊपर उठ चुके थे। उन्हे द्रोह, विद्रोह, अशान्ति, वैमनस्य, प्रतिहिंसा की भावना से घृणा थी। वे शान्ति प्रिय थे। अहिंसा और सरलता के वे समर्थक थे। करनी और कयनी मे वे भेद नही मानते थे। लौकिक जीवन से ऊपर उठने की उनमे साध थी। वे प्रेमी,भक्त,साबक योगी और विश्वासी थे। दुविधा से वे घृणा करते थे। भेष और वस्त्राचार तथा सत्य के नाम पर अनाचार देख कर वे जल उठते थे। समदृष्टि और सहज को जीवन मे वे कार्यान्वित करना चाहते थे। उदारता, विश्वबन्धुत्व , दोनता, धैर्य संतोष , सहन-शीलता और क्षमा उनकी चरित्रगत विशेषताएँ थी। सत्य-प्रियता के कारण उन्हे जीवन मे विरोधो के अनेक तूफानो का सामना करना पड़ा। कबीर स्वतन्त्र विचार के व्यक्ति थे। उसमे प्रतिभा थी, मौलिकता थी। उनकी वाणी मे बल और ह्रदय मे साहस था। अप्रिय सत्य कहने मे भी उन्हें कोइ संकोच नही था। मुरौव्वन और रियायत की भावना उनमे स्थान नही पा सकी थी।

लेखक के व्यक्तित्व के अध्ययन का दूसरा साधन है उपके समकालीन और परिवर्ती लेखको का उसके विषय मे कथन । कबीर सत मत के प्रवर्तक और एक विशेष परम्परा के संस्यापक थे। साहित्य और धर्म के क्षेत्र मे एक नबीन क्रान्ति के जनक थे। आलोचना की एक नवीन शैली के जन्मदाता थे। २५ वो शताब्दि के सर्वश्रेष्ठ कवि और समाज सुधारक थे। समकालीन शासक उनसे अत्यधिक प्रभावित था। (यदि किबदतियो मे जरा भी विश्वास कर लिया जाय) वे एक नवोन समाज के निर्माता थे। निश्चय ही उन्होने अपने युग को जनता को प्रभावित किया होगा और निश्चय ही उनके सिद्धान्तों को पुष्प गंगा मे अबगाहन कर उनके पश्चात नानक,