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[कबीर की साखी
 

 

भावार्थ――इस शरीर को गेरुआ वस्त्रादि से ढंक कर तथा तिलक आदि लगाकर सभी योगी बना देते हैं शरीर देखने से ऐसा लगता है कि योगी हो हैं किन्तु मन को विरला व्यक्ति ही साधु बना पाता है और यदि वास्तव मे किसी का मन योगी हो जाय तो वह सहज रूप से ही परमात्मा को प्राप्त कर सकता है।

शब्दार्थ――सहजैं=परमात्मा को।

कबीर यहुतौ एक हैं, पड़दा दीया भेष।
भरम करम सब दूरि कर, सब ही माँहि अलेख॥१८॥

संदर्भ――जीवात्मा और परमात्मा एक है। भ्रम के कारण ही दोनों में भेद दिखाई देता है।

भावार्थ――कबीर दास जी कहते हैं कि आत्मा और परमात्मा वास्तव मे एक हैं किन्तु माया के आवरण के कारण दोनो मे भेद दिखाई पड़ता है। यदि भ्रम और कुकर्मों को दूर कर दिया जाय तो वह अलक्ष ब्रह्म प्रत्येक प्राणी मे प्राप्त हो सकता है।

शब्दार्थ――यहु तो=आत्मा और परमात्मा। अलख=अलक्ष और परमात्मा।

भरम न भागा जीव का, अनन्तहि धरिया भेष।
सत गुरु परचै बाहिरा, अन्तरि रहया अलेष॥१६॥

सन्दर्भ――हृदय स्थित ब्रह्म का परिचय बिना सच्चे गुरु के नहीं हो सकता है।

भावार्थ――हे जीव! तेरा भ्रम समाप्त नहीं हुआ तू भ्रम जाल मे ही पडा रहा यद्यपि अनेकानेक योनियो मे तूने जन्म ग्रहण किया। बिना सतगुरु के उन अन्तःकरण मे परिव्याप्त अलक्ष ब्रह्म की प्राप्ति नही हो पाती है।

शब्दार्थ――अन्तहि=अनेक। भेष=शरीर।

जगत जहदम राचिया, झूठी कुल की लाज।
तन विनसें कुल बिनसि हैं, गहयौं न राम जिहाज॥२०॥

सन्दर्भ――संसार-सागर को पार करने के लिए राम नाम रूपी नौका का संवल आवश्यक है।

भावार्थ――मनुष्य अपनी मिथ्या प्रतिष्ठा के लोभ मे ऐसे कार्य करता रहता है जिससे नरक की सृष्टि होती रहती है और वास्तविकता तो यह है कि इस शरीर के नष्ट होते ही सारी मर्यादायें स्वतःनष्ट हो जायेगी फिर संसार सागर से पार जाने के लिए राम नाम रूपी नौका का आश्रय क्यो नही ग्रहण करता?