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साध कौ अंग]
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प्रसंग――सत्सगति से व्यक्ति का महत्व बढ़ जाता है।

भावार्थ――कबीर दास जी का कथन है कि किले से निकलने वाली खाई अर्थात् गन्दी नाली का जल कोई नहीं पीता है। वही जब गंगा मे जाकर मिलती है तो गंगा जल हो जाता है। जिसका सव श्रद्धापूर्वक पान करते हैं।

शब्दार्थ――कोट किला। गगोदक=गगाजल।

जांनि बूझि साचहिं तजैं, करैं झूठ सूॅ नेह।
ताकी संगति राम जी, सुपिनैं ही जिनि देहु॥९॥

प्रसंग――कुसंगति से कबीर दास दूर रहना चाहते हैं।

भावार्थ――कबीर दास जी का कथन है, जो जान बूझ कर सच्चो का तथा सत्य का परित्याग करते हैं और मिथ्याचारियो तथा झूठ से स्नेह करते है। हे राम। उनको संगति स्वप्न मे भी मत दो।

शब्दार्थ――सूं=से। सुपिनै=स्वप्न मे।

कबीर तास मिलाइ, जास हियाली तूॅ बसे।
नहिं तर बेगि उठाइ, नित का गंजन को सहै॥१०॥

प्रसंग――सत्सगति में ही रहना चाहिए।

भावार्थ――कबीर दास का कथन है कि हे प्रभु! तुम मेरी भेट उससे करा दो, जिसके हृदय मे तुम्हारा निवास हो। नहीं तो इस संसार से मुझे उठा लो नित्यप्रति कुसंगति दुखः कौन सहन करता रहे?

शब्दार्थ――हियालो=हृदय मे। गजन=दुख।

केती लहरि समन्द की, कत उपजै कत जाइ।
बलिहारी ता दास की, उलटी मांहि समाइ॥११॥

सन्दर्भ――कोई बिरला प्रभु-भक्त ही इम सासारिक भाषा को त्याग कर ब्रह्म मे लीन हो जाता है।

भावार्थ――इस भवसागर मे न जाने कितने लोग जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त करते हैं। यह जन्म और मृत्यु का क्रम ही संसार सागर मे उठने व गिरने वाली न जाने कितनी लहरे हैं। कबीर दास जी का कथन है कि मैं उस दास (भक्त) की बलिहारी जाता हूँ जो इस संसार को त्याग कर ब्रह्म मे लीन हो जाए।

शब्दार्थ――समद=समुद्र। उपजै=उत्पन होती है।

काजल केरी कोठड़ी, काजल ही का कोट।
बलिहारी ता दास की, जे रहे रांम की ओट॥१२॥

सन्दर्भ――संसार काजल की कोठरी के समान है।