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[कबीर की साखी
 


बासुरि गमि न रैंणि गमि, नां सुपनैं तरगंम।
कबीर तहाँ बिलंबिया, जहाँ छांहड़ो न धंम॥४॥

सन्दर्भ—अगम-प्रदेश में कबीर ने प्रवेश किया।

भावार्थ—जहाँ पर दिन-रात अथवा स्वप्न में भी प्रवेश सम्भव नहीं है वहाँ पर कबीर ने प्रवेश किया।

शब्दार्थ—रैंणी = रात्रि। सुपनैं = स्वप्न में।

जिहि पैडे पंडित गए, दुनियाँ परी बहीर।
औघट घाटी गुर कही, तिहिं चढ़ि रह्या कबीर॥५॥

सन्दर्भ—सद्गुरु द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर कबीर चल कर कृतकृत्य हो गए।

भावार्थ—जिस मार्ग पर पंडित लोग चले उसका अनुगमन संसार ने किया परन्तु सद्गुरू द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलकर कबीर दुर्गम स्थान पर पहुँच गए।

शब्दार्थ—औघट = दुर्गम।

शृंगनृकथैं हूँ रह्या, सतगुर के प्रसादि।
चरन कवँल की मौज मैं, रहिस्यूँ अन्तिरु आदि॥६॥

सन्दर्भ—गुरु की कृपा से कबीर स्वर्ग-नरक के प्रलोभनो से ऊपर उठ गए।

भावार्थ—सद्गुरु की कृपा से मैं स्वर्ग-नरक की कल्पना से दूर रहा अब तो मैं ईश्वर के चरण कमलों में दिन-रात आनन्दपूर्वक रम रहा हूँ।

शब्दार्थ—अंग = स्वर्ग। नृक = नरक। थैं = से। प्रसादि = कृपा से।

हिन्दू भूये राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, दुह मैं कदे न जाइ॥७॥

सन्दर्भ—कबीर संकीर्णता से परे अनहद् क्षेत्र में सद्गुरु की कृपा से विचरण करने लगे।

भावार्थ—हिन्दू राम राम रटते रटते मर गए और मुसलमान खुदा, खुदा कहते-कहते मर गए। कबीर कहते है कि वही जीवित है जो इन दोनों से परे ब्रह्म का उपासक है।

शब्दार्थ—मूवे = मर गए।

दुखिया मुवा दुःख कों, सुखिया सुख कौं झूरि।
सदा अनंदी राम के, जिनि सुख दुःख मेल्हे दूरि॥८॥

सन्दर्भ—राम के उपासक सदैव सुखी है।