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मधि कौ अंग]
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भावार्थ――दुखी दुख से पीड़ित हैं और सुखी सुख की खोज मे दुखी हैं। सुख दोनो मे से किसी को न मिला। राम के भक्त दुःख-सुख को भावना का परित्याग करके आनन्द से विचरण करते हैं।

शब्दार्थ――अनंदी=आनन्द से।

कबीर हरदी पीयरी, चूना ऊजल भाइ।
राम सनेही यूॅ मिले, दून्यूॅ बरन गॅवाइ॥६॥

सन्दर्भ――राम-सनेही संत-जन मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हैं।

भावार्थ――कबीरदास कहते हैं कि हल्दी पीली होती है और चूना उज्ज्वलपरन्तु संतजन इन दोनो सीमाओ का परित्याग करके प्रेम के रंग मे मन का अनुरंजन कर लेते हैं।

शब्दार्थ――दून्यू=दोनो।

काबा फिर कासी भया, रांम भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम॥१०॥

सन्दर्भ――कबीर ने भी मध्य मार्ग का अनुसरण किया।

भावार्थ――मध्य मार्ग का अनुगमन करने पर काबा, काशी और रहीम तथा राम मे अन्तर मिट गया। पाप पूर्ण कर्म सूक्ष्म तत्व में परिवर्तित हो गए और इस प्रकार कबीर सूक्ष्म तत्व का उपभोग करने लगा।

शब्दार्थ――कासी=काशी।

धरती अरू असमान बिचि, दोइ तूॅ बड़ा अबध।
षट दरसन संसै पड़या, अरू चौरासी सिध॥११॥५२६॥

सन्दर्भ――धरती और और आकाश दो तुम्वियो के सदृश है जिन्हें बीच मे बाँधना बहुत कठिन है।

भावार्थ――पृथ्वी और आकाश दो तुम्बियो के सदृश है जिन्हे मध्य से बाँधना कठिन है। षट-दर्शन और चौरासी सिद्ध सशय सन्देह मे पड़े रह गए।

शब्दार्थ――अरु=और। तू बडा=तुम्बियो।