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विचार कौ अंग]
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भावार्थ――विविध प्रकार का वसुधा रूपी वन अपार फल फूलो से लदा हुआ है। कबीर का कथन है कि हमे मीठे फलो को ही ग्रहण करना चाहिए, क्योकि कटु फलो को ग्रहण करने से क्या लाभ? अर्थात् इस संसार मे विविधता है, हमें प्रत्येक सद्गुरणो को ग्रहण कर लेना चाहिए। ऐसी स्थिति मे उन्हें विषम क्यो कहे?

शब्दार्थ――वसुधा पृथ्वी। मिष्ट=मीठा।

 

 

३३. विचार कौ अङ्ग

राम नांम सब को कहै, कहिवे बहुत बिचार।
सोई रांम सती कहै, सोई कौतिग छार॥१॥

सन्दर्भ――राम नाम उच्चारण के पीछे विभिन्न विचारधारायें होती हैं।

भावार्थ――राम नाम तो सभी उच्चारण करते हैं। परन्तु उसके उच्चारण मे विभिन्न विचार रहते हैं। भक्त राम नाम का उच्चारण सती-भाव से करता है, राम के हेतु भक्त सती को भाँति अपने को भस्म कर देता है। केवल सतो ही अपने पतिव्रत भाव का कौतुक दिखला सकती है।

शब्दार्थ――कौतिग हार=कौतुक वाली।

आगि कह्यां दाझै नहीं, जे नहीं चंपै पाइ।
जब लग भेद न जांणिये, रांम कह्या तौ कांइ॥२॥

सन्दर्भ――जब तक यथार्थ का ज्ञान न हो जाए, राम नाम लेने से कुछ नही होता है।

भावार्थ――अग्नि, अग्नि कहने वाला अग्नि की ज्वाला का ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकता है जब तक कि वह अग्नि पर पैर नहीं रखता है और जल जाता है, उसी प्रकार जब तक माया और ईश्वर का अन्तर स्पष्ट न हो जाए उसका यथार्थं ज्ञान न हो जाए तो यदि राम नाम का उच्चारण भी किया तो क्या हुआ? अर्थात्उ ससे कोई लाभ नही।

शब्दार्थ――आगि=आग, अग्नि। दाझै=दग्ध होना। चापै=रखना।