संदर्भ—जल में प्रतिबिम्ब के सदृश, सबमें राम है।
भावार्थ—संसार के प्रत्येक पदार्थ एवं तत्व में उस राम का प्रतिबिम्ब उसी प्रकार है जिस प्रकार जल में प्रतिबिम्ब होता है। अर्थात् दृश्यमान जगत उसी के प्रकाश से प्रकाशित है। यदि कोई नास्तिक इसका खंडन करना चाहे तो प्रतिबिम्ब को खंडित करके बिम्ब का उन्मूलन कैसे कर सकेगा अर्थात् जब प्रतिबिम्ब—सम्मुख है संसार के रूप में तो बिम्ब-ईश्वर भी अवश्य होगा।
शब्दार्थ—प्रतिव्यव = प्रतिबिम्ब।
सो मन सो तन सो बिपैं, सो त्रिभवन -पति कहूँ कस।
कहे कबीर व्यदहु नरा, ज्यूं जल पूर्या सकल रस॥११॥५४९॥
सन्दर्भ—निराकार निरंजन की वन्दना का उपदेश।
भावार्थ—कबीरदास कहते हैं कि जिन्हें हम अवतार मानते हैं उनमें मन शरीर तथा उससे सम्बन्धित विषय सब वही है उन्हें त्रिभुवन पति कैसे कहूँ? इसलिए उस निराकार निरंजन की वन्दना करो जो रसों में जल के सदृश समस्त संसार में समाया हुआ है।
शब्दार्थ—व्यंदहु = विद्यमान।
३४. उपदेश कौ अंग
हरि जौ यहै विचारिया, सापी कहौ कबीर।
भौसागर मैं जीव हैं, जे कोइ पकड़ तीर॥१॥
सन्दर्भ—साखियाँ भव सागर पार होने का सम्बल है।
भावार्थ—हरि ने यही विचार किया अर्थात् प्रेरणा दी कि कबीर तुम साखी (अनुभव संचित ज्ञान) संसार के सम्मुख प्रस्तुत करो। संसार रूपी समुद्र में अनेक जीव पड़े हैं जो भव सागर पार करने की आशा कर रहे हैं। सम्भव है कि कोई इन साखियों का सम्बल लेकर भव सागर पार हो जाए।
शब्दार्थ—विचारिया = विचार किया। भौ सागर = संसार समुद्र।