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बेसास कौ अंग]
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सन्दर्भ――वाणी का महत्व।

भावार्थ――मन के अंह को अर्थात् अहंकार को विदूरित करके इतने सुन्दर बचन बोलने चाहिए जो अपने शरीर को शीतल करे और दूसरों के लिए भी सुख-दायक हो अर्थात् श्रोता एवं वक्ता दोनो ही आह्लादित एवं प्रफुल्लित हो।

शब्दार्थ――आपा=अपनत्व का भाव।

कोई एक राखै सावधान, चेतनि पहरै जागि।
बरतन बासन सू खिसै, चोर न सकई लागि॥१०॥५५६॥

सन्दर्भ――साधक की सजगता।

भावार्थ――साधक को अपनी चेतना को इतना जाग्रत रखना चाहिए कि विषय-वासना रूपी चोर प्रविष्ट न हो सके और वस्त्र एवं बरतनो से यदि दूर रहो अर्थात् विषय-वासना से दूर रहो तो चोर कहीं आकर क्या लेगे?

शब्दार्थ――चेतनि=चेतनता। वरतन-वासन=विषय-वासनाएँ।

 

 

३५. बेसास को अङ्ग

जिनि नर हरि जठरांह, उदिकंथैं पंड प्रगट कियौ।
सिरजे श्रवण कर चरन, जीव जीभ मुख तास दियौ॥
उरध पाव अरध सीस, बीस पषां इम रषियौ।
अंन पान जहाँ जरै, तहाँ तै अनल न चषियो॥
इहिं भाँति भयानक उद्र में, उद्र न कबहू छंछरै।
कृषन कृपाल कबीर कहि, इम प्रतिपालन क्यों करैं॥१॥

सन्दर्भ――जिस ब्रह्म ने जन्म दिया है, वही पालन पोषण करेगा।

भावार्थ――जिस हरि ने माता के गर्भ मे रज और वीर्यं से रचना किया, जिसने कान, हाथ, पैर, जीभ, मुख दिया और जिसने पेट के भीतर जठराग्नि से रक्षा की अग्नि का स्पर्शं तक न हो पाया। दस मास तक गर्भ मे ऊपर को पैर और नीचे को सिर करके लटकाए रखा। इस प्रकार भयानक उदर मे कभी खाली पेट नहीं रहने दिया। कबीर कहते हैं कि कृष्ण (हरि) कृपालु है, और कौन इस प्रकार पालन-पोषण कर सकता है?