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[कबीर की साखी
 


सन्दर्भ—विरक्तों के लिए दुःख और सुख सब बराबर है|

भावार्थ—गाने में रोना और रोने में गाना समाहित है। दुःख में सुख और सुख में दुःख समहित है। विरक्तों के लिए दोनों समान है, कोई गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी विरक्त रहता है और कोई विरक्त होते हुए भी गृहस्थाश्रम में अनुरक्त रहता है।

शब्दार्थ—गावण = गाना। रोवण = रोना।

गाया तिनि पाया गहीं,अणागाया थै दूरि।
जिनि गाया बिसवास सूं, तिन रांम रह्या भरपूरी॥२१॥

सन्दर्भ—ब्रह्म अनिर्वचनीय है।

भावार्थ—जिसने ब्रह्म का प्रचार किया उसने ब्रह्म तत्व को प्राप्त नहीं किया और जिसने ब्रह्म का गुणगान नहीं किया वह उससे और भी दूर है। जिसने विश्वास़पूर्वक गान किया है उसी ने ब्रह्म तत्व को प्राप्त किया है।

शब्दार्थ—विसवास = विश्वास।

 

 

३६. पीव पिछांण्न कौ अङ्ग

संपटि मांहि समाइया, सो साहिब नहीं होइ।
सफल मांड मैं रमि रह्या, साहिब कहिए सोइ॥१॥

सन्दर्भ—कबीर का ब्रह्म, समस्त ब्रह्माण्ड में रमा हुआ है।

भावार्थ—जी प्रच्छन्न है,मंदिर में बन्द है वह तो मेरा आराध्य नहीं है परन्तु मेरा न्यायी समस्त ब्रह्माण्ड में रमा हुआ है।

शब्दार्थ—सपटि = सम्पुट मन्दिर में। माँड = ब्रह्माण्ड।

रहै निराला मांड थैं, सकल मांड ता मांहिं।
कबीर सेवै तास कूं, दूजा कोई नांहिं॥२॥

सन्दर्भ—ब्रह्म संसार से अलग, पूरे संसार में व्याप्त है।

भावार्थ—ब्रह्म, ब्रह्माण्ड से पृथक और समस्त ब्रह्माण्ड उसी में रमा हुआ है। कबीर ऐसे ही ब्रह्म की अराधना में अनुरक्त है।

शब्दार्थ—निराला = प्रसंग।