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विर्कताई कौ अंग]
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भोलै भूली खसम कै, बहुत किया बिभचार
सतगुर गुरु बताइया, पूरिबला भरतार॥३॥

संदर्भ—माया के कारण ब्रह्म को पूर्णतया भुला दिया।

भावार्थ—माया के भ्रम में पड़ कर प्रिय को भुला दिया और बहुत सा अनाचार किया। जब से सद्गुरु ने मार्ग बताया तब से प्रिय फिर प्राप्त हो गया।

शब्दार्थ—विभचार = व्यभिचार।

भरतार = भर्त्ता, पति।

जाके मुह माथा नहीं, नहीं रूपक रूप।
पुहुप बास थैं पतला, ऐसा तत अनूप॥४॥५८४॥

सन्दर्भ—कबीर का ब्रह्म निराकार और निर्विकार हैं।

भावार्थ—जो ब्रह्म मुख विहीन, मस्तक रहित, रूप-स्वरूप से परे हैं, जो पुष्प को गन्ध से भी झींना है। ऐसा अनुपम तत्व मेरा स्वामी है।

शब्दार्थ—पुहुप = पुष्प।

 

 

३७. विर्कताई कौ अङ्ग

मेरै मन मैं पड़ि गई, ऐसी एक दरार।
फाटा फटक पषाण ज्यूं, मिल्या न दूजी बार॥१॥'

सन्दर्भ—सद्गुरु के प्रसाद से मेरा मन माया से पृथक हो गया।

भावार्थ—सद्गुरु की कृपा से मेरे मन में एक दरार पड़ गई। मन माया से पृथक हो गया अब दोनों इस प्रकार से पृथक हो गए जैसे स्फटिक पत्थर टूट जाने पर नहीं मिलता है।

शब्दार्थ—फटक = स्फटिक।

मन फाटा बाइक बुरै, मिटी सगाई साफ।
जौ परि दूध तिवास का, ऊकटि हूवा आक॥२॥

सन्दर्भ—मन सगे सम्बन्धियों से विरक्त हो गया।

क॰ सा॰ फा॰—१७