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एक स्थल पर चरणदास ने उन्हे आध्यात्मिक क्षेत्र के सुरमो मे विशिष्ट स्थान प्रदात किया --

कबीर दादू घने पहिर भक्तर बने ।
नामदेव सारिखे बहुत कूदे ॥
सैनसदना वली भक्त पीपा बड़ो ।
राम की ओर कूं चले सूघे ॥

माया से युद्ध करते हुए राम की ओर कूं सूघे चलने वालो मे कबीर का वास्तविक विशिष्ट स्थान है दयाबाई और धरणीदास ने कबीर को श्रेष्ठ भक्त और साधक मान है । उद्धरण के लिए उनकी बानियो के संग्रहो के क्रमश: पृ० २२ तथा पृ० १३, ३३ को देखा जा सकता है ।

ऐसा अनुभव होता है कि गरीबदास और धनी धमंदास कबीर से विशेष प्रभावित थे । गरीबदास ने कबीर और उनके स्वभाव तथा व्यक्तित्व के विषय मे बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ उल्लेख किया है । बात यह है कि कबीर को गरीबदास अपना गुरु मानते थे और इसलिये उनको दृष्टि मे कबीर का बड़ा ऊंचा स्थान था । गरीबदास की बानी (पृ० १० से १६ तक) मे कबीर के सतजुगणो का उल्लिख हुआ है । गरीबदास के अनुसार कबीर माया से रहित, स्वच्छ हृदय वाले ज्ञानवान शून्य का तत्व समभ्कने वाले गगन मन्डल मे विचरने वाले सुरत सिन्धु के गीत रचने वाले, आनन्द के उद्गम, ज्ञान और भक्ति की साकार मूर्ति मनुष्यो मे हंस, जीवित जगदोश , चार वेद छँ शास्त्र और १८ बोध के प्रकाण्ड पंडित, न्यायप्रिय जगद्गुरु शांति प्रिय , मोह और माया के विनाशक , कर्म की रेख मिटाने वाले, भक्तो के सरदार, अलख को लखने वाले, सुन्नीशाखा पर निवास करने वाले और भंवर गुफा मे रमने वाले थे । गरीबदास की दृष्टि मे कबीर समस्त सन्तो मे श्रेष्ठ हैं --

ऐसा सतगुरु हमें मिला सुरत सिन्धु के तीर ।
सब संतन सिरताज है सतगुरु अदल कबीर ॥

गरीबदास ने कबीर के स्तबन मे प्राय: सौ साखियो की रचना की है और इन साखियो मे कबीर को बडा सम्मान और गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया है । शायद ही किसी ने कबीर के विषय मे इतने विस्तार से लिखा हो । कबीरदास का अपने निरालेपन और फक्क्ड़पन के कारण, स्पष्टवादिता और अप्रिय सत्य कथन के कारण बढा विरोध हुआ । संत कवि मलुकदास भी इन से बहुत प्रभवित थे । इन को धर्मिक विचारधारा और सिद्धान्तों मे कबीर की वाणी लहरें ले रही हैं। उन