पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/२९४

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रहट । टीडरि= घटिका, बर्तन । बिगूते=बर्वाद कर दिया । गनिका = वेश्या । चित्र= दृश्यमान जगत । विरोध्या=विरोध किया । रहि गई= यहीं पडी रह गई अर्थात् उससे छुटकारा हो गया । सन्दर्भ्-कबीर का कहना है कि दृश्यमान जगत से विमुख होकर ही परम पदं की प्राप्ति होती है । भावार्थ- रे बाबा । यह ससार पेड़ को छोड़कर डालियों मे उलझा हुआ है अर्थात् इस दुनियाँ के लोग जगत के मूलाधार ब्रह्म का ध्यान न करके वान्होंपचारों मे फसे हुए हैं । ये अभागे एव मूखे लीग शरीर के प्रति आसक्त होकर रह गए हैं । इन्होंने सो-सो कर (अज्ञान मे) सम्पूर्ण जीवन-रूपी रात्रि व्यतीत कर दी और अब अन्तिम समय से इन्हें कुछ विवेक हुआ है । तव ये जागे है --होश मे आए हैं ।(अव इस अल्प समय में हो ही क्या सकता है? वान्होंपचारों की निरर्थकता की ओर सकेत करते हुए कबीरदास कहते है कि मैं मदिर में जाता हूँ) तो वहाँ केवल देवी की मूर्ति दिखाई देती है (ज्ञान की वात कुछ नहीं मिलती) । और यदि तीर्थों में जाता हूँ, तो वहाँ केवल पानी मे स्नन करने की चर्चा होती है-वहाँ भी ज्ञानार्जन की कोई वात नहीं दिखाई देती है । जीव अपनी छोटी एव सकुचित बुद्धि तथा असमर्थ वाणी द्वारा उस परमतत्व को न पहचान पाता है और न उसका वर्णन ही कर पाता है । सिद्धि को प्राप्त साधुजन पुकार-पुकार कर उस परम तत्त्व की चर्चा करते हैं, परन्तु मद बुद्धि जीवो की समझ में कुछ नही आता है । ये लोग तो कई जन्मो से इसी प्रकार अज्ञानान्धक्रार मे सोते हुए चले आ रहे है । ये तो अज्ञान जन्य आखान गमन रूपी चक्र से रहट के पात्रों की भाँति बधे हुए हैं, और इन्होंने बार बार जन्म लेकर तथा बार-बार मृत्यु का आलिंगन करके अपने जीवन को नष्ट कर लिया है । गुरु के अतिरिक्त ससार में और किसकी बात का विशवास किया जाए ।और किसके साथ रहा जाय ? अनेक मतवादो मे पडे हुए ब्धक्तिमृरै की सच्ची आस्था किसी के प्रति' नहीं हो पाती है । ठीक ही है, वेश्या के यहाँ जन्म लेने वाला पुत्र किसको अपना पिता कहेगा ? कबीर कहते हैं की मैंने इस जगत का विरोध किया अर्थात् मैं इस ससार के प्रति आसक्त नहीं हुआ । इससे मैं सदृगुरु की अमृतमयी वाणी को समझ सका है । खोजते-खोजते अन्त में मैंने सतगुरु को प्राप्त कर लिया और आवागमन येही पडा रह गया । अर्थात् जन्म मृत्यु के चक्र से मेरी मुक्ति हो गई अर्थात् मुझको परमै पर्दे की प्राप्ति हो गई । अलंकार-(१) लोकोक्ति-पेड छाडि डाली लागै । (11) रूपकातिशयोत्तिपपेड, डाली, जत्र । (111) पुनरुक्ति प्रकाश- सोइ सोइ । खोजत-खोजत । (१व्) विशेपौक्ति की व्यंजना-स-साधु हैं समुझत नाहीं । (1४) उदाहरण-ब" ज्यू टीडरिया । (111) वकोग्रेश्क-गुरु विन ’ रहिये ।