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की वाणियो मे कबीर् के प्रति बड़े ही सम्मानसूचक शब्दो का प्रयोग हुआ है । सुमीरन प्रकरण मे मलूक कबीर का आदर्श जनता के लिय प्रस्तुत करते हैं- उनका कथन है कि "सुमिरन ऐसा कीजिए जैसे दास कबीर ।" यह इस बात का द्योतक है कि कबीर ने साधना बड़ी लगन से की । साधना मे लगन और तत्परता के लिए कबीर मध्ययुगीन सन्तो मे सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं । इसलिए मलूकदास का उन्हें इस दिशा मे आदर्श मानना असंगत नहीं प्रतीत होता । मलूक को कबीर की सिद्धि पर विश्वास था जैसा कि निम्नलिखित प्ंक्तियो से ज्ञात होता है --

 हमारा सतजुरु बिरले जानै ।
सुई के नारे सुमेर चलावै सो यह रुप बखानै ॥
कीवौ जानै दास कबीरा कि हरिनावस पूता ।
की तौ नामदेव और नानक की गोरख ॠवुधता ॥

इन पक्तियो के कबीर को प्रहलाद और गोरखनाथ आदि साधको के समान पद पर व्यक्त किया गया है। यह भी उनके गौरव का द्योतक है ।

दुखहरनदास मूलक पथी थे । पर कबीर् से वे भी कम प्रभवित नहीं थे । संसार् की विधितओ को शान्त करने वाले मे जहां उन्होने गोरखनाथ नानक और मलूक के नाम गिनाये हैं, वही उन्होने कबीर के महत्व को भी अंकित किया है । देखिए --

जस कबीर जस गोरख जस नानक जस व्यास ।
तास कलीमल जग हरन को प्रगटे मलूकदास ॥

(कूपावती-- एक अप्रकाशित ग्रन्थ से)

इन पंक्तियो मे मलूक को कबीर के समान व्यक्त करके उन्हे भी महान सिद्ध् किया गया है । फिर भला कबीर के महान व्यक्तित्व के लिये क्या कहा जाय ।

कबीर को ध्रुव ,प्रहलाद और विभीषण के समान , हनुमान और अंगद के समान दास तथा रामानन्द और ननक के समान भक्त मान्ने वलो मे शिवानारायण सहाब विशेष उल्लेखनिय हैं । उनकी निम्नाकित प्ंक्तिया उल्लेखनीय है :-

घ्रुव प्रहलाद विभीषण धीरा । पांडव पांचव धरे शरीरा ॥
हनूमान ,अंगद और आनी । यही विधी प्रीति करै सय जानी ॥
रामानन्द कबीर गुसाई । नानक नाम जान एक साई ॥