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गरन्थावली ] [ ६१६

      'उन्मनि'- योग की सिद्धावस्था है, जिसमे मन समाधिस्थ हो जाता है।
      'आज्ञाचत्र' के समीप ही कारण शरीर से सम्बन्धिदत सात कोष माने गये हैं । इनमे 'उन्मनी' भी एक है । साधक इस 'उन्मनी' कोष मे पहुंचने पर पुनराग  मन को प्राप्त नही होता है, और वह समाधिस्थ होकर अजर अमर हो जाता है। इस स्थिति को प्राप्त होने वाला साधक निरन्तर अमृत रस-पान किया करता है । कबीर ने इस 'उन्मनि' शब्द का बार बार प्रयोग किया । उन्होने स्वय इस अवस्था का वर्णन इस प्रकार किया है कि - 
                    उन्मनि ध्यान घट भीतर पाया, अवधू मेरा मन मतिवारा । 
                     उन्मनि चढा गगन रस पैवै, त्रभुवन भया उजियारा ।

नाथ-पथी हठयोगी भी इस शब्द का प्रचुर प्रयोग करते थे । इस अवस्था मे वे भी आनन्द की अनुभूति मानते थे । एक स्थल पर स्वयं गुरू गोरखनातथ ने इसके विषय मे लिखा है कि -

                    उन्मनि लागा होइ आनन्द ।
      वास्तव मे 'उन्मनि' को तुरीयावस्था कहा जा सकता है । इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए साधक त्रिकुटी पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है और धयान मग्न अथवा आत्म-चेतना के केन्द्रित हो जाने फलस्वरुप साधक का शरीर एकदम वाह्रा बातो के प्रति विरक्त् एव उदासीन हो जाता है । इस अवस्था को प्राप्त करके साधक द्वैत भाव भूल कर पूर्ण अद्वैतावस्था की अनुभूति मे रमने लगता है । जैसा कि कबीर ने लिखा है कि - 
                     उन्मनि मनुऔ सुन्य समाना, दुविधा दुर्गति भागी । 
         इससे स्पष जाता है कि उन्मनि अवस्था शुन्य मे केन्दित अर्थात् समाहित होने मे समर्थ होती है । मन की समस्त दुविधाएँ  समाप्त हो जाती है, मन एक दम  निश्चल एव विशेपण रुप मे प्रयुक्त् होने पर 'समर्थस्थिति' के रुप मे ही अधिकतर किया है । 
                                          (१०४) 
               आत्मां अनदी जोगी, 
                       तीवै महारस अंमृत भोगी ॥ टेक ॥ 
               ब्रह अगनि काया परजारी, अजपा जाप उनमनीं तारी ॥
               त्रिकुट कोट मै आसण मांडै, सहज समाधि विषै सब छैडै ॥ 
               त्रिवेणी त्रिभूति करै मन मजन, जन कबीर प्रभु अलष निरजन ॥
                 शब्दार्थ - महारस = प्रेमरस ।
                 सन्दर्भ  - कबीर कायायोग के द्वारा प्रभु भक्ति की प्राप्ति करते है ।
                 भावार्थ - योगी आत्मस्वरुप मे प्रतिष्ठित होकर आनन्द प्राप्त करता है ।