पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द्वारा' मानव शरीर नितान्त आवश्यक है ।जन्म मरण वस्त्र-परिवर्तन मात्र है)।इस शरीर रूपी कंचुकी के वास्त्र को त्रनाने के लिए खोज कर बहुत सुन्दर करघा तथा नो रग के वागे लाए गए है।अर्थात् इस शरीर को साधना के योग्य बनाने के लिये गुरु के सुन्दर उपदेश रूपी घागे द्वारा नव-द्वारा को आपूरित किया गया है।चन्द्र ओर सूर्य ना डयो को एक स्थान पर सुपुम्ना के साथ मिलाया गया है।चन्द्र और सूर्य ना डयो को एक स्थान पर सुपुम्ना के साथ मिलाया गया है।इस प्रकार से साधन योग्य यह शरीर तैय्यार करने मे बहुत समय लगा है।पॉंचो इन्द्रियो के विषयो(रूप,रस,शब्द,स्पशं,गध)का त्याग करके सावना रूपी वस्त्र को ज्ञान और भक्ति के हीरे-मोतियो से युक्त किया गया है।जिन दिनों अनेक देवता और अन्य मनुष्य सासा रक विषयो मे फसे हुए थे,उन दिनो करोडो वर्षा तक साधना करके इस साधना योग्य शरीर को तैयार किया गया है।जो व्यक्ति रात-दिन सजगता पूर्वक साधना करके इस शरीर के द्वारा साधना करता है,उसको काल नही खाता है अर्थात् वह अमर हो जाता है।कबीर कहते हैं कि गुरु की कृपा के फलस्वस्प वही व्यक्ति सहज-स्वरूप को प्राप्त होता है। अलकार-(।)साग रूपक--सम्पूर्ण पद मे। (॥)रूपकातिशयोक्त्ति-साधन,नो रंग,हीरे मोति। (॥।)छेकानुप्रास-सहजै,समाई। विशेष-(।)'कचुकी' से ईश्वर के प्रति पतिभाव की व्यजना है।साधक निप्ठापूर्वक पनिरूपी परमेश्वर की आराधना करे।अन्त:करण को भक्ति-भवना और ईश्वर-प्रेम के उपयुक्त वना लेना ही इस शरीर रूपी कचुकी को तैय्यार करना है। (॥)कोटी वरम "सीया-तुलना कीजिए- कोटि जन्म मनि जतन कराहीं।अत राम कहि आवत नहीं। चूना हम ना (॥।)निग वामुर सोये नाही-तुलना कीजिए- या निदा सर्यनूताना तस्यामू जागति संयमी।यन्याम जाग्रति न्रिनानिना ना निटा पइयतो मुने। जोचत जिनि मारे मित माास डिचाण घरि मत हो कन्ता ॥टॅक नूर चिन पुर चिन बपु विहना गोई।सो न्यावन जिनि मारे फना,जाये गगन माम न होई॥