पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३१६

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ग्रन्थवलो ǀ ६३१

      पेली पार के पारधो, ताकी धुन्हो पिनच नही रे ।
      ता बेलि को ढुकयौ मृग लौ, ता मृग कंसी सनहो ऱे ॥
      मारथा मृग जीवता राख्या, यह गुर म्यांन मही रे ।
      कहै कबीर स्वामी तुम्हारे मिलन कौ, बेली है पर पात नही रे ॥
   शब्दार्थ - जिनि = मत । मुवा = मृत, मरा हुआ । विहूणा = रहित । मास = गोसास, इन्द्रियो द्वारा  परापत होने वाला भक्ति एवं ज्ञान का रस । स्यावज = शिकार । ऱगत = रक्त । पैली पार के = श्रष्ठ । पारधी = शिकारी। धुनही = धनुही, धनुष पिनच = प्रत्यचा। वेली = वेल। पान पते । विक्षेप = सक्ल्पविकल्प ।
 
    सद्भभ् - जीवात्मा अपने ही साधक-रुप को पति मानकर् कह रही है।
    भाधार्थ- हे मेरे प्रियतम, मन रुपी मृग को जीवित मत मारो और मरे हुए मृग को भी घर मत लाओ। अभिप्रेत यह है की मन कि मन का दमन उचित नही है। दमित मन निर्जीव हो जाता है। उसका भी कोई उपयोग नही है। भावुक मन ही जीवन का लक्षण है। यदी मन निर्जीव् होजाएगा, तब फिर ईशवर के प्रति प्रेम करने का साधन ही क्या रह जाएगा? यदि शरीरस्थ मनोवेग समाप्त हो जाएँगे? तब फिर ईशवर के प्रति ललक कहाँ रह जाएगी? परन्तु तुम मास रहिन भी घर मत  आना अर्थात तुम मन का उत्रयन करना, जिससे वह निर्जीव तो हो नही और उसी के द्वारा तुमको भक्ति और ज्ञान रूपी महारस की प्राप्ति हो जाए|जब तक भक्ति और ग्यान के मह्ररास् द्वा्रा समस्त इन्द्रियाँ आप्लावित न हो जाएँ,तब तक तुम अपनी साधना मे लगे रहना मेरे बारे मे चिन्तन तक न करना,क्योम्कि जब् तक रास्ता पुरा न होजाए, तब तक घर पहँचना कैसा?
    इस तुच्छ साधना से कुचले हुए मन-रुपी मृग के न हृद्य है, न खुर है, न मुख है और न शरीर है। है पति,उस जन्तु का शिकार मत कर जिसमे न रक्त हे,और न माम्स ही हे।  तुम अत्यन्त श्रेष्थ् शिकारी हो तुम्हारे धनुष मे प्रत्यचा ही नही है। अर्थात तुम कुच्छ-साघ्नाओ बिना ही इस मन-रुपी मृग को अपने वश मे कर लेने की सामर्थ्य रखते हो। इस वशीभूत मन-रुपी मृग के अब सिर नही है अर्थात् अहकार एव विषयो को ग्रहण करने की इस्की सामर्थ्य समाप्त होगई है।
    गुरु के ज्ञाण की यही महिमा है कि साधक ने इस मन-रुपी मृग को मार भी लिया है और जीवित भी रखा है, अर्थात् इसकी विपय-भोग की आकाक्षा एवं उनमे लिप्त होने की भावना नष्ट होगई है, पर यह भगवद् भत्कि के अनुरुप विषयो को ग्रहण करता है। कबीरदास कहते है कि हे स्वामी अब आपमे मिलने