पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३२३

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६३) [कबीर्

                   भेद्कातिसश्योथि------ओर श्याबद ।
           विशेष------(Ⅰ)प्रतीको का प्रयोग है ।
           (ⅠⅠ)श्याबद एव मिला शब्दो के द्वारा जन एव हिन्दू धर्मावलम्बी साधको
के प्रति सकेत है ।
          (Ⅲ)घर लाना मुहावरा है ।तात्पर्य है स-व-स-व्रूप-सि-थ्ति ।
          (Ⅳ)हरि से तात्पर्य आत्माराम है।
          (Ⅴ)भाग हमारे '  'खोई---भाव सम्य देखिए----
                 जतन बिनु मिरगनि खेत उजारे।
                 
          वुधि मेरी किरवी,गुरु मेरो विभुका,अकिखर दोड रखवारे।
          कहै कबीर अव जान देहौ,वरीया भली सभारे।
                                         (कबीरदास)
                 (२१७)
राजा राम विनां तकती धो धो ।
राम विनां नर क्यूं छूटोगे,जम करै नग धो धो धो ॥ट्क॥
मुद्रा पहरचा जोग न होई,घूं घट काढ्चा सती न कोई ।
माया कै सगि हिलि मिलि आया,फोकट साटै जनम गवाया ॥
कहै कबीर जिनि पद हरि चीन्हा मलन प्यड थै निरमल कीन्हा॥


संदर्भ----कबीर का कहना है, कि राम नाम के विना जीवन व्यर्थ है। भावार्थ----राम की कृपा के विना मनुष्य का शरीर "धो-धो" करके जलता है। दुनिया देखती रहती है अथवा कोइ भी उसकी रक्षा नहीं कर सकता है। राम की क्रुपा के बिना मनुष्य किसी तरह भी मृत्यु के फंदे से नहीं बच सकता है। यमराज वटे-वटो पो धो-धो कर (असहाय वनाकर)जला देता है।केवल मुद्रा घाग्ण करने मात्र मे योग की गाधना नही होती है । घूंघट निकाल लेने मात्र से कोइ स्त्री मानी नही फहलाती है । जीव भगवान मे ध्यान न लगाकर माया के माघ हिल-मिल जाना है,और इम अकार मटे के व्यापार की भांति अपने जन्म को व्यर्थ ही नष्ट कर देना है। कबीरदास कहते है, कि जिन्हे भगवान के स्वरूप का साक्षात्कार हो जाता है, अथवा जिन्होने हरि के चरणॊं मे ध्यान लगा लिया है, उन्ही का जन्म गयेर हो, उन्होने हम पाप-मलिन शरीर को पुण्य-स्थान बना लिया है।

     अमराग----(Ⅰ)पुनग्तिप्र्णश-----घो घो।
              (ⅠⅠ)वत्रोनि----जर क्यू छ्टोगे।
              (Ⅲ)पट्मैत्री----हिनि मिनि।
     विशेष----मृदा कोइ-----राक्षानार का विशय है।कबीर बार बार यही