पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३२७

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रामं रामं रामं रमि रहिये, साषित सेतो भूलि न कहिये ||टके ॥ का सुनहां कौं सुमृत सुनाये, का साषित प हरि गुन गांये । का कऊवा कौं कपूर खवांये,का बिसहर कौ दूध पिलांये ॥ साषित सुनहां दोऊ भाई, बो नीदै वौ भौंकत जाई|

  अंमृत ले ले नींब स्यंचाई ,कहै कबीर वाकी बांनि न जाई||

संन्दर्भ - कबीर दाम शात्तको के प्रति अपना विरोध प्रकट करते है । भावार्थ -राम मे मन वचन,कर्म से(सच प्रकार) रमे रहो परन्तु भूलकर भी राम नाम की चर्चा शात्क से नत करो ।वह इसका पात्र नही हे, उससे राम नाम की चर्चा व्यर्थ है । जैसे कुत्ते को धर्मशास्त्र सुनाने से क्या लाग है,वैसे ही वे नमक्ष हरिगुण-गान का क्या उपयोग हो सकता है ? कौए को कपुर निनाने मे तथा सपं को दूध पिलाने से क्या लाभ है ? शात्क् कुत्ता दोनो भाई है शाया नवैद भगवान को भक्तो की निन्दा करता है और कुत्ता सदैव दूसरो पर मोपता रहता है । कबीर कहते है कि नीम के वृक्ष को चाहे अमृत से सीचा जाए,परन्तु वह अपनी स्वाभाविक कड वाहट नही छोडता है ।

अनकार (१)पुनरुविप्रकाश--राम राम राम ले-लो ।

     (२)जनुप्राम- राम राम रमि,सुनहा सुमृत साषिन ।
     (३)प्रम-नाषिन सुनहा "नीदै भोंकत 
     (४)उदाहरन का साषित  गाये 
     (५)    -