पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३२९

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चतुर हैं - इससे प्रत्येक कर्म का पूरा हिमाव देना पड़ता है यानी यहाँ कारण-कार्य का नियम ऐसे निवधि

रूप मे कार्य करता है कि प्रत्येक कर्म का उपयुक्त फल मिलता है |यह एक ऐसा नगर है जहाँ रहने वाले प्रत्येक  जीवात्मा का धर्म भ्रष्ट होगया है और यहाँ किसान(नेत्र,कान,नाक,मुँह तथा त्वचा ) रहते हैं, जो जीव रूपी  स्वामी का कहना नहीं मानते है|इस गाँव का ठाकुर काल समय-समय पर इस शरीर रुपी खेत को नापता  रहता है और मन रूपी पटवारी अपना हिस्सा नहीं  छोड़ता है| भाव यह है कि काल तो प्रत्येक क्षण सिर पर सवार रह कर यह देखना है कि शरीर कही खराब तो नही हो गया है और मन रूपी पटवारी मुझसे शरीर का व्योग माँगता रहता है| वस्तुस्थिति यह है कि यह शरीर प्रत्येक  क्षण क्षीण होता रहता है और  इस कारण काल ठाकुर का भय मुझे हर घड़ी सताता रहता है|साथ ही पटवारी के डर के कारण मैं मनचाहे ढंग पर शरीर का उपभोग भी नहीं कर सकता हूँ। मेरे मन ने मेरे इस शरीर को विपय-वासनाओ के जर्जर  बंधनो से बुरी तरह जकड़ दिया है जिसके कारण   

मेरे शरीर को अत्यधिक कष्ट होता रहता है| इस गाँव का उधार देने वाला मेहता अर्थात् प्रारब्ध कर्म अत्यन्त दुष्ट है और प्रियमाण कर्मरूपी वलाही (कर्मचरी) भी बड़ा दुष्ट है| वह मुझे विषय मार्गो उलझाता रहता है| वह तो अच्छे-अच्छे ज़मीदारो के सिर के बाल भी नोच लेता है-उनसे प्रेम एव सदवृत्तियो की निधि छीन कर उन्हे दरिद्र देता है| इस नगर का बुद्धि-रूप दीवान भी व्यथाओ के प्रति सहानुभूति रखता हुआ न्याय नही कर पाता है| पिछले जन्मो का अनुभव यह है कि शरीरात होने के अयमर पर धर्मराज ने जब मुझसे इस शरीर का पुरा हिसाब-किताब मागा तो मेरी और बहुत बकाया निकला था |उस समय मेरे शरीर रुपी खेत को नष्ट करने वाले धार्मिक रुपी पाँचो किसान मुझे छोड़ कर भाग गए और हे राम बेचारा जीवात्मा ही इस प्रकार के बन्धनो से बाँध दिया गया| इसीलिए कबीरदास कहते हे कि हे साधुओं मेरा कहना गाँठ बाँधलो और भगवान (हरि) का भजन करके इस भवडागर से पार उतरने के लिए बेटा बाँधो| इसके पशचात् वह भगवान से प्रर्थना करते हुए कहते है कि हे राम इस बार तो इस जीव (मुझको) क्षमा कर दिजियेगा| अगले जन्म मे आपका पूरा हिसाब चुकता कर दूँगा-अपने शरीर को विघ्नाओ से बचाकर अधिक अच्छा करके रखूँगा|

अनंवार -(|) ऱागम्पक-पुरा पद|
       (||) स्पनाविनमेगिरा-गाठ|

विशेष -(i) मन नग्प्रदाव के अनेक प्रनीको का प्रयोग है| (ii) पर्यावरण ने अनन्द्रियों के नाम इस प्रकार लिए है मानो उनके प्रति प्रयोग कर रहे हो| (iv) आपस में शरीर प्राप्त हो जाना है|इसी को काल द्वारा गेन का सपना कहा गया था| पढ़ने अपने की नापना एक नया महावर्ग