पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(v)खाने वाली डाकिनी जीवात्मा है । यह मायाज्न्य समस्त परिवार को समाप्त करती है। विभित्र सम्बन्धियो को खाने के बाद योग की प्राप्ति होती है । इसका आशय यह है कि ससार के जितने भी सम्बन्ध है जब तक उन्हे समाप्त करके एक मात्र स्वामी (हरि) मे चित्त को लगा कर उनका स्मरण नही किया जाता है, तब तक उनसे संयोग नही होता होता है ।

(vi) इस पद मे यह भी ध्वनित है कि सासारिक सम्बन्धो से विमुख होकर ही भगवान की प्राप्ति हो सकती है । ठीक ही है । दो घोडो की सवारी असम्भव है । उस दुनियां मे जाने के लिए इस दुनियाँ को छोडना ही पडेगा ।    
 (vii) तीन बार 'राम' शब्द कहने का अभिप्राय यह है कि मनसा, वाचा कम॔णा 'राम' के प्रति प्रकुति एव अनुरक्ति होनी चाहिए । 
   मन मेरौ रहटा रसनां पुरइया,
             हरि कौ नांउ लै लै काति बहुरिया । टेक ॥
   चारिखुंटी दोइ चमरख लाई, सहजि रहटवा दियौ चलाई ।
   सासू कहै काति बहू ऐसै, बिन काते निसतरिबौ कसै ॥
   कहै कबीर सूत मल काता, रहटां नहीं परम पद दाता।
 शब्दार्थ-रहटा=चरखा। रसना=जीभ । पुरइया=सूत पुरने वाली तकुली। चार खुँटो=अन्त:करण । चतुष्ट्य-मन, बुद्धि, चित्त अहकार। चमरख=चर्म के टुकडे जिनमे से होकर तकुआ घुमता है। यहाँ तात्पर्य है प्रवृत्ति एव निवृत्ति मार्ग।
   संदर्भ-कबीर अपनी आत्मा को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि वह तू प्रभु का नाम ले लेकर प्रभु-प्रभु का सूंत कात।
   भावार्थ - मेरा मन ही चरखा है और जीभ ही सूत पुरने वली तकुली है। हे आत्मा रूपी बहू तू राम का नाम लेती हुई इस चरखे के द्वारा भक्त्तिमय जीवन के सूत कात। मन,बुद्धि, चित एवं अहकार ही इस चरखे की चार खूँटियाँ है तथा प्रवृत्ति एव निवृति मार्ग वे चमडे के टुकडे है जिनमें होकर यह चरखा घूमता है। इस चरखे को सहज समाधि के मार्ग पर चलादो। भाव यह है कि साघक जीभ से राम का नाम ले, अन्त करण चतुष्ट्य को प्रवृत्ति एवं निवृत्ति मर्ग के माध्य समन्वित करदे और सहत समाधि प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो जाए।
   गुरु रूप सास सघक जीव रूप को चेतावनि दे रही है कि इस चरखे रूपी मन से भक्ति रूपी सूत कात अन्यथा जीवन का निस्तार नहीं है अर्थात बिना ऐसा किए हुए जीवन सफल नही होगा। कबीरदास कह्ते है कि यदि इस जीवन रूपी चरखे से भक्ति रूप सूत् भली प्रकार काता जाए, तो यह जीवन रूपी चरखा केवल भक्ति रूपी सूत का साघन ही न होकर मोक्ष प्रदान करने का माध्यम बन जाएगा।