पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३५२

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३)लोकोक्ति-अपणे पाव आप मारना।

      ४)रूपकातिशयोक्ति-पोट ।
 विशेष-१)मुहावरो का प्रयोग-हावडि धावडि,अगुली पर गिनना।
      २)उध्दार के लिए सत्कर्म आवश्यक है।भगवान भी उन्ही का उध्दार करते हैं जो स्वय अपने उध्दार मे प्रयत्नशील होते है ।
   
                  (२४०)
 प्रांणी काहे के लोभ लावि,रतन जनम खोयौ ।
 बहुरि हीरा हाथि न आवे,राम बिनां रोयौ ॥ टेक ॥
 जल बुंद थे ज्यनि प्यड बाध्या,अगिन कुंड रहाया।
 दस मास माता उदरि राख्या,बहुरि लागी माया॥
 एक पल जीवन की आशा नाही, जम निहारे सासा।
 बाजीगार ससार कबीरा जांनि ढारौ पासा॥
   शब्दार्थ- काहे के=किसके । बहुरि=फिर । हीरा=हीरा रूपी मानव ।
   जीवन । प्यड=शरीर । वाध्या=तैय्यार किया । अगिन कुंड=गर्भ ।
   जानि=सोच समभ्लकर । ढारौ पासा=आचरण करॊ ।

संदर्भ-कबीर कहते हैं कि विवेकपूर्ण आचरण ही जीवन का सर्वंस्व है । भावार्थ-हे प्राणी । तूने किस लोभ के वशीभूत होकर रत्नरूपी जीवन नष्ट कर दिया । हीरा रूपी यह मानव जीवन फिर दुबारा प्राप्त नही होगा । राम की भक्ति न करने के कारण अब केवल पश्चाताप ही तुम्हरे हाथ रह गया है ।भगवान ने वीर्य और रज कि बूँद से तुम्हरा शरीर उतपन्न किया और उसको गर्भ की अग्नि मे सुरक्षित रखा|दस महीने तक भगावन माता के पेट मे उस गर्भ की रक्षा करते रहे|परन्तु तुमने उन भगवान का ध्यान तो किया नहि,और जन्म लेते ही माया मे लिप्त हो गए|तुमने यह विचार नही किया कि इस जीवन का पलभर भी भरोसा नही है| इसको ले जाने के लिए यम एक-एक श्त्रास गिनता रहता है,अर्थात यमराज सदैव यह देखते रहते है कि कब सासें पूरी हो और मै इस जीव को लेजाऊँ| कबीर कहते हैं कि यह संसार बाजीगर की तरह धोखा देने वाला है|इससे विवेकपूर्वक आचरण चहिए|


 अलकार- १)रूपक-रतन जनम।
        २)रूपकातिशयोक्ति-हीरा,अग्नि कुन्ड।
        ३)उपमा-बाजीगर संसार।
 
 विशेष-  १)मुहावरो का प्रयोग-हाथ आन,पासा ढारना।
        २)गर्भवारस के कष्ट तथा संसार की असारता का वर्णन करके कबीर भय-दर्शन द्वारा जीव को सदाचरण की प्रेरणा प्रदान करते है।
        ३)वैराग्य एव निर्वेद की व्यंजना है।