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ग्रन्यावली ] [ ६६९

करता है? मोह में पड़ा हुआ तू, क्यों अपने आपको काल के अबे कुएँ मैं डालने की तैयारी कर रहा है ? कबीरदास कहते है कि मनुष्य अपने आपको सांसारिक बन्धनों में उसी प्रकार बँध देता है जिस प्रकार तोता स्वयं आकर अपने आपको नलिनी में कैद हो जाता है ।

अलंकार-- (1) गूढोत्तर - फिरत कत कहा परत ।

     (11) पुनरुक्ति प्रकाश- फूलते-फूलते, जोरि जोरि, लेहु लेहु ।
     (111) उपमा-ज्यूँ मापी, ज्यूँ" सूवा ।
     (111) रूपक - अंधेरे कूआ |

विशेष- (१) इस पद में संसार की असारता का प्रतिपादन है ।

   (२) वैराग्य एवं निर्वेद की व्यंजना है ।
   (३) जीव एवं जीवन की तुच्छता का वर्णन है ।
 ४) कहै कबीर- नलिनी को सूवा । शुक को पकडने के लिए पहले बधिक

एक घूमने वाली लगा देता है -उसे पीनी या नलिनी कहते हैं । शुक आकर उठ कर बैठ जाता है । वह उलटा हो जाता है और नली के घूमने के साथ वह भी फिरने लगता है । इससे वह समझता है कि नली से बँध गया हैं| बस, इसी बीच में बघिक आकर शुक को पकड़ लेता है । यहीं दशा मानव की है । वह सांसारिक प्रपंच में स्वयं लिप्त होता है और समझता यह है कि संसार ने उसे पकड़ रखा है | अस्तु ।

(५) तोते के नलिनी मे स्वयं आकर बद्ध होने का कथन सूरदास ने भी किया है-

        अपुनपौ आपुन ही बिसरयो ।
         ><    ><   ><
   हरि-सौरभ मृग नाभि बसत है, हुमाम-तृण सू धि फिरयो |
         ><     ><         ><
      मरकट मूठि छांडि नहि चीनी, घर-घर द्वार फिरने |
       सूरदास, नलिनी को सुवटा, कसि कौने पकडूयो है
                ( २४२ )

जाइ रे दिन हों दिन देहा, करि ले बौरी रांम सनेहा || टेक || बालापन गयो जोबन जासी, जुरा मरण भी सकट आसी 1 पलटे केस नैन जल छाया, मूरिख चेति बुढापा आया । 1 रांम कहत लज्या क्यू' कीजै, पल पल आउ घष्ट तन छीजै । लाया कहै तू जम की दासी, एकै हाथि मृदिगर दूजै हाथि पासी । कहै कबीर तिनहू सब हारया, रांम नाम जिनि मनहु विसारया 11 शब्दार्थ- जाडरे=क्षीण हो रहीं है । जुरा-जरा, बुढापा । आसी-आएगा । पलटे केस-बालों का रंग बदल गया है अर्थात् बाल सफेद हो गए है । लज्या-लज्जा