पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३५५

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७ ० ] [ कबीर

संदर्भ व वपैरग्राग मानव को चेतावनी देते हुए कहने है कि उसे रामनाम का स्मरण करना चाहिए । भावार्थ-री पागल जीवात्मा । दिन प्रतिदिन यह शरीर क्षीण हो रहा है । हे पगली! भगवान राम के प्रति मनको अनुरक्त कर ले । तुम्हारा बचपन तो नष्ट हो ही गया है, जवानी भी चली जाएगी और बुढापा तथा मृत्यु का भय उपस्थित होगा| तुम्हारे बाल सफेद हो गए हैं, नेत्रो में कमजोरी के कारण सदैव पानी डब-डबाता रहता है । हे मूर्ख! अब भी होश में आजा । देख,बुढ़ापा तो आ ही धमका हैं । राम-नाम का उच्चारण करने हुए तुझ को शर्म क्यों लगती है । प्रत्येक क्षण तेरी आयु कम हो रही है और तेरा शरीर दुर्बल होता चला जा रहा है । लज्जा होती है कि मैं यमराज का दासी हूँ । इसी कारण इसको राम-नाम कहने से पराडूमुख करती रहती हूँ । मेरे एक हाथ में मुगदर है और दूसरे हाथ में फदा है । जिनमे यमराज को इसे मारकर बाँधकर ले जाने में विलम्ब न लगे । कबीरदास कहते हैं कि जिन्होने मन से भी राम्-नाम को भुला दिया है, उनका जीवन सर्वथा निरर्थक हो गया है । अलक४र-(1) मानवीकरण-लज्जा कहाँ ।

    (1।) पुनरुक्ति प्रकाशम-पल-पल ।

विशेष- व्यजना यह हैं कि राम-नाम के स्मरण से मृत्यु पर विजय हो जाती है ।

निर्वेद सचारी भाव की व्यंजना है ।

( २४३ ) मेरी मेरी करतां जनम गयो, जनम गयो परि हरि न कहाँ ।। टेक।

बारह बरस बालापन खोयी, बीस बरस कछू तप न कोयी । तीस बरस के राम न सुमिरयौ फिरि पछितानों विरघ भयौ ।। न्फ सरवर पालि वंघावे, लुणे खेत हठि याहि करै । आयौ चौर तुरंग मुभि ले गयी मोरी राखत मुगघ फिरै श्व 'सीस चरण कर कंपन लागे, नैन नीर अस राल बहै । 'जिन्या वचन् मूध् नहीं निकर्म, तव सुकरित की बात कहै ॥