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ग्रन्यावलौ ] [ ६७७

             (३) रूपकांतिशोक्ति-माटी 1
             (४) विरोघाभाम - अलख लखाया, जीवत मारी मूवा माटी
             (५) रूपक…माटी का चित्र पवन का थभा
             (६) माटी का मन्दिर, ज्ञान का दीपक, पवन वाति
             (६) रूपकात्तिशयोक्ति- चित्र

बिशेष…- (१) ससार की नश्वरता का वर्णन है (२) पवन ब ति - प्राण के आवागमन से ही यह शरीर चेतन प्रतीत होता है । इसी से प्राण वायु को इसका आधार भी कहा है और उस की बत्ती के साथ समता की है

                          (२५०)
           मेरी जिभ्यर बिसन नेन नाराइन, हिरदै जपों गोविदा |
           जम दुचार जब लेख मांप्या, तब का कहिसि मुकदा || टेक ||
           तू बांह्यण मैं कासी का जुलाहा, चीरिह नमोर गियाना ||
           तै सब मांगे भूपति राजा, मोरे रांम धियाना 1
           पूरब जनम हम बांह्यन होते, वोछे करम तप होंना
           रांम देव की सेवा चुका, पक्ररि जुलाहा कोंनंहां
           नोंमी नेम दसवीं करि सजम, एकादसी जागरणां
           द्वादसी वांन पुनि की बेलां, सर्व पाप छचौ करणां
           भौ बूड़त कछू उपाइ करीजै, ज्यू तिरि तीरा
           रांम नांम लिखि भेरा बांधी. कहै उपदेस कबीरा
        शब्दार्थ - मुकुन्द= दृ कृष्ण, विष्णु
        सदर्भ- कबीर कर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हैं
        भावार्थ- र्कवीर कहते हैं कि मेरी जीभ विष्णु का, नेत्र नारायण का तथा

हृदय गोविन्द का जप करते हैं । परन्तु हे जीव ' तुम तौ भगवान का जप करते नही हो । तुम से यम के द्वार पर जब कर्मो का हियाव मागा जाएगा, तव वया तुम यह कह सकोगे कि तुमने जीवन मे बिष्णु का नाम-स्मरण किया था ? तुम तो त्राह्यण हो और मैं काशी मे उत्पन्न जुलाहा हूँ । तुम मेरे ज्ञान को नही समझते हों । तुम जै से सब लोग भगवान से पृथ्वी के आधिपत्य एव राज्य की याचना कर ते हैं (अर्थात् सासारिक सुखोपभौग की आकांक्षा कर ते हैं) पर मुझे तो वेवल भगवान राम का ध्यान ही चाहिए । पूर्व जन्म मे हम भी ब्राह्मण ये । हमारे कर्म ओ छे थे औ र हम तप से रहित थे । भगवान राम की मेवा करना हम भूल गए । अत भगवान ने पकड कर हमको जुलाहा बना दिया । तुम नवमी के दिन नियमादिक० का पालन करते हो । दशमी को संयम करते हो, एकादशी- को जागरण करते हो, द्वादशी को दान-पुण्य का अवसर मानते हो और इम प्रकार सव पापों का क्षय करने का साधन करते हो । इनसे पुण्य-सवार का अहकार वहन करते हो, (पर ये पाप-क्षय के पूर्ण