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६७८ ] [ कवीर एव नफल नाधन नही है १) अत भव-नागर मे ङूवने से वचने के लिये कोइ अन्य उपय करना चाहिये जिस्मे तैर कर इसे पार करके दूसरे किनरे पर पहुंच सको । वत्री क उपदेग तो यही है कि राम-नाम के स्मरण की नाँव तैय्यार करो जिस्से इस भव-गागर को पार कर सको।
सनकार - (१) गूढोक्ति - तव का - मुकन्दा । (२) त्पक - राम-नाम मेरा । विशेप - (१) भक्ति का प्रतिपादन है । वही एक ऐसा साधन है जिस्से भव-नागर को पार किया जा सक्ता है । (२) इस पद के अनुसार उच्च कर्म करने से ही व्यक्ति उच्च बन्ता है । (३) पूरब जनम ०००००० वीन्हा - इन पंक्तियो मे कर्म - फल सिध्वान्त अवं पुनजंन्म के भग्तीय निद्वात की स्पषट स्वीकृति है । (४) भक्ति ही उच्चतम कम है । यह व्यजित है । (५) मेनी जिन्या गोविंदा - तुलना कीजिए - सिय - गम तरुप अगाध अनूप , विलोचन मीनन को जलु है । स्त्रुति राम कथा , सूउ राम को नाम हिये पुनि रामहिं को थलु है । मनि रामाॆह सो, गति रामहिंं सो, रति राम सों रामहिं को बलु है । सब्को न कहे , तुलसो के मते , इतनो जग जीवन को फलु है । (गोस्वामी तुल्सीदास ) (२५१) कहु पाडे सुचि ववन ठांच, जिहि घरि भोजन बैठि खाऊ ॥ टेक ॥ माता जूठी पिता पुनि जुठा , जूठे फल चित लोग । जूठा आंवन जूठा जानां, चेतहु क्य़ु न अभोग ॥ अंन जूठा पांनी पुनि जूठा , जूठे बैठि पकाया । जूठी कडछी अन परोस्या , जूठे जूठा खाया ॥ चोका जूठा गोवर जूठा , जूठी की ढीकारा । फहे कबीर तेई जन सूचे , जे हरि भजि तजहिं बिकारा ॥