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ग्रन्यावली ]
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  हम रफत रहबरहु समां, मै खुर्दा सुमां बिसियार ।

हम जिमां असमांन खालिक, गुंद मुसिकल कार ॥

असमान म्यांनै लहग दरिया, तहाँ गुसल करदा बूद ।

करि फिदृ र रह सालक जसम, जहां स तह्यां मौजूद ॥

हम चु बू'दनि बूंद खालिक, गरक हम तुम पेस ।

कबीर पनह खुदाइ की, रह दिगर दावानेस ॥

शब्दार्थ- खालिक=सृप्टिकर्ता । दर हाल= इसी समय । पच= पाँच तन्मायाएँ (मूल पच महाभूतो का सूक्ष्म रुप) अथवा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ । रजसि=रजिश करके । मुरद= मुर्दा । मिस्त= बहिश्त= स्वर्ग । दोजगा= दोजख, नरक । दुंद= द्वन्द्व= अशाति । ईत= ईति= दु ख दुरापद । आतस= आतिश, अग्नि । जगम =जन्तु । रफत= जाने वाले । खुर्दा= अत्यल्प । बिसिमार=महान । असमान= आसमान, ब्रह्मरध्र । दरिया=नदी। गुसल= स्नान । बूद=जानो ।बू दनि= जानना बूद=जानना है । गरक =गरक= तन्मय, लीन । पेस = पेश, सामने, समक्ष । पनह =शरण । दिगर=दीगर= दूसरा । दावा= अधिकार । नेस= नेस्त, नही है । पैमाल= पामाल, पैरो से कुचलना। दराज =लम्बी । आतस =आतिस, अग्नि,ताप । सुमो=तू । रहवर=मार्ग दर्शक । लहग= चर्वी । बू द अस्तित्व ।

सदर्भ - कबीर भगवान के प्रति अनन्य समर्पण को अभिव्यक्ति करते हैं ।

भावार्थ- सृष्टिकर्ता हर जगह मौजूद है । वह इम समय यहाँ भी है । हड्डियों के इस ढाँचे के अर्थात् इस असार शरीर ने मेरे साथ दुश्मन जैसा व्यवहार किया है और पैरो से कुचल कर मुझ को मुर्दा (मृतकतुल्य) बना दिया है । स्वर्ग और नरक उसी के हैं । यह ससार रूपी लम्बी दीवाल उसी की छाया है । समस्त भेदभाव, दुरापद, ताप, पशुओं के जहर आदि इम ससार रूपी जाल मे भरे पडे हैं । हम राहगीर हैं । तू हमारा रहनुमा (मार्गदर्शक) है । मैं अत्यन्त छोटा हूँ, तू अत्यंत महान है । हम जमीन (नीचे) हैं । सृष्टिकर्ता ऊपर आसमान के समान हैं । दोनो को एक करना वडा ही कठिन काम है । आसमान मे चरबी की नदी वहती है और उसमे आत्म तत्त्व स्नान करता है अर्थात् ब्रह्मरन्ध्र मे होकर अमृत झरता है और उसमे आत्म तत्त्व स्नान करता है अर्थात ब्रह्मरन्ध्र मे होकर अमृत झरता है और आत्मस्वरूप जीव उसका भोग करता है। इम शरीर द्वारा तू उस मालिक की चिन्ता कर और घर्म एवं नीति का आचरण कर । उसका साक्षात्कार तुझको हर स्थान पर होगा । स्वय अपने को जानना तुझ मरजन हार को जान लेना है । हम तुम्हारे सम्मुख तृम्हारे ध्यान मे मग्न है ।

कबीर कहते हैं कि मैं भगवान की शरण मे हूँ यहाँ कोई दूसरा दावेदार नही हैं ।

विशेष-(1) कबीर प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव दिखाते हैं । (२) हम रफत काल-तुलना कीजिए-

राम सो बडो है कौन मोसो कौन छोटो ।