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( २ )

जहाँ दया तहाँ घर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहाँ काल, जहाँ क्षमा तहाँ श्राप ।

इन पंक्तियों मे घर्मं का बडा उदान्त, व्यापक और जन कल्याणकारी रूप व्यक्त हुआ है । दया कबीर के समस्त दर्शन सिद्धान्तो और उपदेशो का सार तत्व है । कबीर को कविता की भावभूमि की एक भलकथनपयुक्त उद्धरणों से प्राप्त होती है । इसी प्रकार के महान विचार, महान सन्देश, और तत्व एव तथ्य पूर्ण कथन कबीर की कविता की विशेषतायें है । कबीर की कविता मे महान संदेशो की अभिव्यक्ति हुई है । सभ्यता, संस्कृति वैज्ञानिक प्रगति, सामाजिक मान्यताओ और लौकिक जीवन के मानदण्डो मे कितने ही परिवर्तन समुपस्थित हो जांय परन्तु कबीर के संदेश अनुभूतिपुण कथन कभी भी जूठे नही पड़ेंगे । यह अभिनवता वर्ण विषय की यह शास्वतता इसलिए है कि कबीर की अनुभूति जीवन सत्य और प्रत्यक्ष जगत से ग्रहीत हुई है । कबीर के यह शब्द कभी फीके नही पड़ेंगे और इनका प्रभाव सीधे मानवीय ह्रदय पर पडता है ।

कबीर की भव भूमि मानव के समाजिक,धार्मिक, आर्थिक और आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित है कबीर समाज के सूक्ष्म पर्यालोहचक थे । उनके लिए समाज और धर्म मानव-जीवन के दो अभिन्न पक्ष है । समाज, धर्म का आधार लेकर ही फूलता फलता और आगे बढ़ता है, और धर्म समाज का पुरक है । तात्पर्य यह है कि दोनो अन्योन्यश्रित है । सत्य, सामाजिक और धार्मिक गुण है । विश्वाम्, धैर्य, दया,क्षमा, सन्तोष, दैन्य, शील, विवेक आदि जितने सामाजिक गुण है उतने ही धार्मिक । कबीर ने इसीलिए इन पर बडे विस्तार के साथ विचार प्रगट किया है । सम दृष्टि और समता मानव के लिये बड़े वरदान है । और कुसग मानव दया वनस्पति व पशु जगत के लेये भी समत रुप से दुखप्रद है । जनसुलभ अप्रस्तुत योजना के द्वारा कबीर ने अपने समय के कुसग से अभिशप्त मानव समाज को सम्बोधित करते हुए कहा-

(१)

केल तबहि न चेतिया, जब ढिंग जागी बेरि ।
आपके चेते क्या भया, कांटों लीन्हा घेरि ।

(२)

बुद्धि बिहूबा आदमी जाने नहीं गवांर ।
जैसे कपि परवस परयौ नाचै घर- घर वार ।