पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३८०

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प्रन्थावली रहे तथा उनका मनन करते रहे परन्तु उस परम तत्व के रहस्य को नही सभक्त सके |तुमने सध्या की,गयत्री मत्र का जप किया और शस्त्र विहित ब्राह्मणोचित छओ कर्म्(अध्ययन,अध्यापान,याजन,और प्रतिग्रह)किए|परन्तु यह परम तत्व इनसे भी बताया गया है|तुमने घर छोड कर वन मे जाकर कठैर तपस्या की,वह तुम कदमूल-फल खोद कर खाते रहे |ब्रम्हज्ञानी बन कर तुमने अनेक प्रकार से ध्यान लगाया , परन्तु इन समस्त ब्रम्हचारो के फलस्व्ररुप तुमा अपने कर्म बन्धन मे वृद्धि करते रहे और पप पुण्य का हिसाब रखने वाले रामराज के खाते को बढाते रहे |तुमने रोजा रखे नमाज पढी तथा जेर से अजान की आवाज भी लगाकर लोगो को सुनाई|परुन्तु इन सबका भी कोई विशेष फल नही निकल|ठीक ही है|जब हृदय मे कपट भरा हुआ हो, तो भगवान कैसे मिल सकते है? कपट पूर्ण हृदय लेकर काबा और हज जाने से क्या लाभ हो सकता है?समस्त संसार के ऊपर काल का प्रभाव छाया हुआ है-जगत की सारी भूमि पर यमराज का पट्टा है|उसके अन्तर्गत समस्त ज्ञानी भी सम्मिलित है। कबीरदास कहते है कि जो राम के भक्त् है,वे उन पट्टे सै मुक्त है आर्थात उनकी व्यवस्था स्व्य भग्वन करते है ,उनकी जमीन पर यमराज का इजारा नहि है|

       अलकर-(१)पुनरुक्ति प्रकाश-पढि पढि,
             (२)विशेषोक्ति-वेद पुरान   न पावा,
             (३)छैकानुप्रास-खनिखावा जिनि जानी।
             (४)पदमंत्री -गियानी घियानी,
             (५)यत्रोक्ति-मिल क्यू जावा|
ब            (६)मन्विकरन-कल का मूर्तीकरन।
             (७)रुपक-काल।

विशेष--(१)हिन्दु और मुसल्मानो दोनो के ब्रम्हचारो का विरोध है|

     (२)कर्मरहित होना ही मोक्ष है   |
     (३)सध्या-प्रात,दोपहर,या शाम का वह समय जब दिन के भागो का मेल होता है तथा इन समयो पर किये जाने वाले धर्मिक कृत्य।
     (४)गयत्री - वैदिक स्तोत्र जिस मै आठ आठ वाणोके तिन चरण होते है,इसका उपदेश उपनयन सन्स्कर के अवासर पर दिज वालक को दिया जता है|
     (६)हज्ज - नियन्त काल पर धर्शन और प्रदक्षिणा करना -मक्के की यात्रा |
    (७)सव ज्ञानी-ब्रम्ह ज्ञानि छोड कर अन्य राव प्रकर के गनियो से तत्पर्य है -बौद्धिक ज्ञानि, ज्ञान के अहकारी इत्यादि।