पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३८७

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शब्दार्थ-विष=काम वाराना का जहर| अंचन=माया, विपयासत्कि| राती=प्रेमिका| खाडी=खडी हूँ| अथवा खाडी का अर्थ रमणी| पतीजौ विश्वास| पटवर=रेशमी वस्त्र| पाट=रेशमी वस्त्र|रिसालू=अप्रसत्र हो जाएगा|

                सन्दर्भ-कवीर माया को दुतकरते है|
                भावार्थ-कबीर माया को सम्वोधित करते हुए कहते हैं कि, रे वहीन, तुम अपने घर जाओ| तुम्हारे नेत्र मुझे जहर मालूम होते है (अथति तुम्हारी ओर देखते हुए मुझे डर लगता है)| मेंने तो सासारिकता का त्याग करके माया से रहित निरजन परमतत्त्व के प्रति अनुराग कर लिया है| अव मुझे किसी से कुछ लेना-देना नही है|मैं तो उसकी सूझ- वूझ् पर वलिहारी जाता हूँ जिसने तुमको मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भेजा है| तुम तो मेरी माता ओर वहिन के समान हो| (शरीर को वनाने वाली होने के कारण माया जीव की माता है तथा निर्माता ईश्वर की पुत्री होने के कारण माया जीव की वहिन है|" माया कवीर को उतर देती हुई कहती है कि,'हे कवीर देखो तो सही| मैं तुम पर आसत्क नारी की भांति खडी हूं| तुम मेरे श्रृगार की ओर तो देखो मे कवीर को पति रुप मे वरण करने के लिए स्वर्ग लोक से चलकर यहाँ आई हूँ|" कवीर कहते है "वहाँ स्वर्ग लोक मे तुम्हारे ऊपर एसी क्या विपत्ति आ पडी जो तुम यहाँ मृत्यु लोक मे आ गई हो| मेरे पास क्या रखा है? मैं जाति का जुलाहा हूँ| मेरा नाम कवीर (बुजुर्ग बडदा) है| अब तो तुझको मेरी तुच्छता एव असमंथता पर विश्वास हो जाना चाहिए| तुम उन्के पास जाओ जो रेशमी वस्त्र घारण करते हैं ओर अगर तथा घिसे हुए चन्दन का लेप करते है| हमारे यहाँ आकर तुम क्या करोगी? हम तो एक बहुत ही निम्न जाति मे उत्पत्र जुलाहे है| जिन भगवान ने हमको बनाया है ओर इस सुन्दर स्वरुप व्दारा सजाया है उन्होने मुझको अपप्ने प्रेम के डोरे मे वांध लिया है| तुम कितना भी प्रयत्न करो, परन्तु मेरे मन मे तुम्हारे प्रति आसत्कि उत्पन्न् नही होगी| पानी मे आग नही लग सकती है? मेरा स्वामी जब मुझ से मेरे कार्यो का हिसाव-किताव मागेगा, तव मैं उनको क्य हिसाब दे सकूँगा| मुझे आयाकर्षित करने के लिए कुछ भी करो,परन्तु मैं तुमहारे प्रति कभी भी आकर्पित नही हो सकुंगा, क्योकि पनी के व्दारा पत्थर कभी भी गीला नही हो सकता है| मैं भगवान की मछली हूं, भगवान ही मुझ्को पकड्ने वाला मछवा हे और वह मेरा रक्षक भी है| अगर मै रज मात्र भी तुम्हारा स्पर्श कर लूँ तो राजा राम मुझे से अप्रसत्र हो जाएंगे| कवीर कहते है कि मैं जाति का जुलाहा हूं| मेरा नाम कबीर है| मैं ससार से विमुख होकर जगलो मे मारा-मारा घुमता हूँ| (अर्थत जीवन के विभित्र क्षेत्रो मे वेषयो से उदासीन होकर घूम रहा हूं। तुम आस-पास से हटकर दूर बँठो। एक तो तुम मेरी माता (शरीर के नाते) हो और ऊपर से सगी माता के समान होने के कारण मेरी मौसी हो।
           अलंकार-(१)  पद मँत्री-अजन निरजन् |