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७१४ ] [ कबीर

                      ( २५१ )
               ताथे मोहि नाचिबौ न आवै ,
           ऊभर था ते सूभर भरिया,त्रिष्णां गागरि फूटी ।
           हरि चिंतन मेरौ मदला भींनौ,भरम भोयन गयौ छूटी ॥
           ब्रह्म अगनि मै जरी जु ममिता,पाषड अरू अभिमानां ।
           काम चोलना भया पुराना मोपे होइ न आना ॥
           जे बहु रूप किये ते कीये,अब बहु रूप न होई ।
           थाकी सौंज संग के बिछुरे रांम नांम मसि धोई ॥
           जे थे सचल अचल ह्वै थाके,करते बाद बिबादं ।
           कहै कबीर मै पुरा पाया,भया राम परसांदं ।
       शब्दार्थ--ऊभर=खाली। सूभर=शुभ्र। मदला=मन रुपी वाजा ।
 भोपन=वह आटा जो ध्वनि मे ठनक उत्पन्न करने के लिए मदल पर लगाया जाता है। 
 सौज=साज, सज्जा, भोग-सामग्री। सग=विपय विकार रूपी साथी। मसि= 
 पापकालिमा । परसाद=कृपा ।
       संदर्भ--कबीरदास ज्ञान-दशा का वर्णन करते हैं ।
       भावार्थ--कबीर कहते है कि मुभु पर भगवान की कृपा हो गई है । इससे 
 अब मुभु से ससार के भाँति-भाँति के नाच नही नाचे जाते है । मेरा जो चित्त रूपी 
 घडा भक्ति के जल से शून्य था वह अब भक्ति के शुभ्र जल से भर गया है और मेरी 
 तृष्णा-रूपी गगरी फूट गई है । हरि के चिन्तन के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले आनद 
 जल से मेरा रूपी मदला बाजा भीग गया है और वह मन्द पड गया है । भ्रम-
 रूपी भोयन(आटा) से मेरे मन रूपी मदला की मुवित हो गई है । ज्ञान की अग्नि 
 मे ममता, पाखण्ड और अभिमान जल गए हैं । कामवासना रूपी मेरा वस्त्र पुराना 
 पड गया है । अब मेरे पास अन्य कोई वस्त्र नही है--अर्थात् मैं अब काम-वासना 
 रहित हो गया हूँ । अब तक मैंने इच्छाओ के वशीभूत होकर जो अनेक जन्म धारण 
 कर लिए सो कर लिए परन्तु अब वे रूप मै धरण नही करूँगा । कर्म-भोग रूपी 
 मेरी समस्त सामग्री समाप्त हो गई है और विपय-विकार रूपी साथियो से मेरा 
 छुटकारा हो गया है तथा राम-नाम ने मेरे समस्त पूर्व कलुपो को धो दिया है । जो 
 वासनाएँ अब तक चचल थी और आपस मे भुगडती रहती थी अर्थात् जिनके कारण 
 मेरा मन चचल बना रहता था, वे अब उदात्तीकृत हो गई हैं और निष्त्रिय हो गई 
 हैं । कबीरदास कहते हैं कि मुभु पर राम की कृपा हो गई है और मुभु पूर्ण परम 
 तत्त्व का साक्षात्कार प्राप्त हो गया है।
      अलंकार--(१) सभग पद यमक--ऊभर सूभर । सचल अचल ।
              (२) रूपक--त्रिप्णा गागर,भरम भायल ।
              (३) व्रहा अगिनि,काम चोलना ।
              (४) रूपकातिशयोत्त्कि--मदला,सौज ।