पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४०८

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ग्रन्थावली ] जे तूं चौसठि बरियां धावा , नही होइ पच सूं मिलांवा ॥ जे तै पांसै छसै तांणी, तो तूं सुख सूं रहे पराणी । पहली तणियां ताणां पीछै बुणिया बांणां ॥ तणि बुणि मुरतब कीन्हां , तब रांम राइ पूरा दीन्हां ॥ राछ भरत भई संझा, तारूणी त्रिया मन बधा ॥ कहै कबीर बिचारी, अब छोछी नली हमारी ॥

शब्दार्थ- तनि=तान्कर । करगहि=शरीर रूपी करघा । बिनानी=विज्ञानी एवं विवेकी । उदासी=उदासीन [प्रनिविम्बित चैनन्य से तात्पर्य है । आत्मा छसै ताणी= छ चऋो मे प्राण-सचार करोगे । मुरतब= मुरत्तब, तैयार । राछ= ताने का तराव उठाने गिराने का जुलाहो का औजार। सक्भा= सन्ध्या । तरूणी त्रिया = युवती पत्नी । छोछी= छू छी, खाली ।

सन्दर्भ- कबीरदास काययोग के द्वारा ज्ञान-प्राप्ति का वर्णन करते है । भावार्थ- कबीरदास ससारी जीवो को चेतावनी देते हुए कहते है कि रे भाई, यदि कर सको तो हरि-स्मरन रूपी ताना- बाना [वस्त्र] बुन लो । बाद मे भगवान [भाग्य] को दोष मत देना इस वस्त्र को बुनने के लिए तुम्हारे पास मानव-शरीर रूपि करछा है जो विज्ञानमय एव विवेकी है। इस करछे मे पाँच प्राण [प्राण,आपान,उदान,समान एव व्यान] रूपी पाचँ प्राण ( प्राण, अपान, उदान, समान एव व्यान) रुपी पाँच प्राणी है। इसमे एक आत्मा [प्रतिविम्बित चैतन्य] भी है,जो साक्षी स्वरूप उदासीन है। ससारी जीव ने अपने प्रकार के विषय-विकारो मे फस कर उसको नष्ट कर दिया है।अगर तुम चौसठ बार (६४ घडी) अर्थत् दिन रात भी प्राणायाम करोगे, तब भी उन पाँच प्राणो से तुम्हारा संयोग नही हो पाएगा । अगर तुम षट्चऋो मे प्राण-सचार रूप बाना बुनोगे तो हे प्राणी ! तुक्भको परम आनन्द की प्राप्ति होगी।(अगर तुम पाँचो प्रारगो को उसी साधना की ओर उन्मुख करने रुप ताना तानोगे बाद मे मन महित बुनोगे, तो तुम्हे परम आनन्द की प्राप्ति होगी)। यही कम है कि पहले ताना तनना चाहिए ,बाद मे बाना। अर्थात् पहले इन्द्रियो के विषयों को वश मे करना चाहिए । बाद मे वृत्तियों को ईश्वरोन्मुख । इस प्रकार के ताने-बाने से हरि-स्मरण रुप वस्त्र वुनने पर स्वयं राम ही पुंणँ तत्व के दर्श रुप पारिश्रमिक देंगे । सामान्य जीवों कि दशा‌ यह है कि राछ भरते-भरते ही सायकाल हो जाता है अर्थत् वुनाई से सम्बघिंत औजारो को भरने मे ही समस्त दिन व्यतित कर देते है कि वे पुजा-पाठ आदिक वाह्याचार मे ही पुरी आयु व्यतित कर देते हैं। उसके वाद सायकाल होते ही‌ उन्हे अपनी युवती पत्नी काम मोह सताने लगता है, और वे सोने की। तैयारी करने लगते हैं । तात्पर्य यह है कि सघ्या आजाने के पश्चात् वे मृत्यु की गोद मे सो जाते हैं। कबिरदास विचार पुर्वक कहते तो ठीक तरह से वुनकर वस्त्र पुरा कर दिया है और‌ अब हमारी नली‌ एक दम खाली है अर्थात् हमारे समस्त् कर्म निश्शेष हो गय हैं और हमारा पुनजंन्म नही‌ होगा।