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ग्रन्थावली]
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शब्दार्थ-खोहा=धूल । चोवा=सुगन्धित द्रव कई गध द्रव्यो को मिलाकर बनाया जाने वाला एक सुगन्धित द्रव्य । मुटचाई=पुष्ट की । जम्बुक=गीदड । चंच=चोच ।

सन्दर्भसंसार की असारता का प्रतिपादन करते हैं।

भावार्थ-इस शरिर का साज-श्रृगार किस लिए किया जाए?यह शरीर जल भुनकर राख की ढेरी हो जाएगा। जिस शरीर पर सुगन्धित द्रव्यो और चन्दन का लेप किया जाया है,वही शरिर चिता में लकडियो के साथ जल जाता है। जिस शरिर को अनेक यत्न करके पुष्ट किया जाता है,वह शरिर अग्नि मे जल जाता है अथवा उसको गीदड खाते हैं। जिस पर सजा-सजा कर पगडी बाधी जाती है,उस सिर पर कौए अपनी चोच संवारते है(मारते है)।कबीर कहता हैं कि प्रति ही अपनी लौ(अपना ध्यान) लगाना चाहिए।

अलंकार -(1) गूढोक्ति-कारन देहा ।

(11) अनुप्रास-चोचा चन्द्न चरचत ।

(111) पुनरुक्ति प्रकाश-रचि रचि ।

विशेष-निर्वेद' एक वैराग्य-भाव की मार्मिक व्यजना है।

(२५६)

धन घंधा ब्योहार सब,माया मिथ्यावाद।

पांणी लीर हलूर ज्यू;हरि नांव बिना अपवाद ॥टेक॥

इक राम नाम निज साचा,चित चोति चतुर घट काचा॥

इस भरमि न भूलसि भोली,बिधना की गति है औली॥

जीवते कू मारन धावै,मरते कौं बेगि जिलावै ॥

हुहि जम से बैरी,सो क्यूं सोवै नींद घनेरी॥

जिहि जाघना नींद उपावै,तिहिं सोवत क्यूं न जगावै॥

न देखिसि प्रानीं,सब दीसै भ्कूठ निदानीं॥

तन देवल ज्यू धज आछै,पड़िया पछितावै पाछै॥

जीवत ही कुछू कीजै,हरि राम रसाइन पीजै॥

राम नाम निज सार है,माया लागि न खोई॥

अति कालि सिरि पोटली,ले जात न देख्या कोई॥

कोई ले जात न देख्या,बलि विक्रम भोज ग्रस्टा॥

काहु कै सगि न राखी,दीसै विसल की साखी॥

जब हस पवन ल्यौ खेलै पसरचौ हाटिक जब मेलै॥

मानिख जनम अवताश,नां ह्वै है बारबारा॥

कबहू ह्वै किसा बिहाना,तर पंखी जेम उडानां॥

सब आप आप कूँ जाई, को काहू मिलै न भाई॥'