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ग्रन्थावली]
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भावार्थ - यह हरि के भजन के कल्याणकारी प्रभाव का प्रमाण है कि नीच व्यक्ति भी डंके की चोट उच्च पद को प्राप्त हो जाता है । भगवान के भजन का ऐसा प्रभाव है कि पत्थर भी पानी मे तैरने लगते है । अघम भील (गुह निपाद, शबरी) एव निम्न जाति की वेश्या भी विमान पर बैठकर बैकुण्ठ चले गये । नौ लाख तारो का समूह, चन्द्रमा और सूर्य सब निरन्तर गतिशील बने हुए हैं, पर भक्त ध्रुव की पदवी अटल है - ध्रुवतारा अपने स्थान पर स्थिर बना रहता है, उसको अन्य ग्रह नक्षत्रो की भाँति भ्रमित नही होना पड़ता है । वह भगवान राम के दरबार मे उच्च आसन पर प्रतिष्ठित है । उसकी भक्ति की साक्षी वेद देते हैं तथा संत एवं ज्ञानी सब उसका गुणगान करते हैं । कबीर कहते हैं कि हे भगवान, यह दास आपकी शरण मे आया है । उसको अपने चरणो मे स्थान दे दीजिए ।

अलंकार - विरोधाभास - नीच पदवी ।

विशेष -(१) भील - केवट, गुह और निषाद एक ही व्यक्ति हैं । यह जाति का भील था । वनवास के समय इसने राम की बहुत सेवा की थी । उसके प्रेमपूर्ण व्यवहार से प्रभावित होकर राम उसे भाई के समान मानने लगे थे|

(३) गणिका- यह पिंगला नाम की वेश्या थी । एक बार वह श्रंगार किए हुए आधी रात तक अपने प्रेमी की प्रतीक्षा करती रही, परन्तु वह नही आया । इससे उसके ऊपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । उसको बडी आत्मग्लानि हुई । उसने वेश्यावृत्ति छोड़ दी, और वह भगवान का भजन करने लगी । कहते हैं कि एक बार तोते को 'राम' पढ़ाते हुए उसको भगवान ने स्वर्ग भेज दिया था ।

अजाति- अनेक ऐसे भक्त हो गए है जिनका जन्म जाति अथवा मूढ योनि मे हुआ था, परन्तु भजन के प्रभाव से वे स्वर्ग के अधिकारी हुए । इनमे कतिपय नाम अत्यन्त प्रसिध्द हैं । यथा - कुछ , जटायु, जामवन्त, वाल्मीकि ।

ध्रुव - राजा उत्तानपाद कि दो रानियाँ थी - सुनीति और सुरुचि । सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए । राजा सुरुचि को अधिक प्यार करते थे । इस कारण उनको उत्तम भी अधिक प्रिय था । एक दिन राजा उत्तानपाद उत्तम को गोद मे खिला रहे थे । उसी समय ध्रुव भी वहाँ पहुँच गया और राजा की गोद में चढ़ने का प्रयत्न करने लगा । यह देखकर सुरुचि ने व्यंग्य किया कि तप करने पर ही राजा की गोद मे बैठने का सौभाग्य प्राप्त होता है । यह कहते हुए उसने ध्रुव को एक ओर धकेल दिया । ध्रुव रोता हुआ अपनी माता के पास पहुँचा और रोते हुए उसने अपने अपमान का हाल अपनी माता को सुनाया । माता ने भी उसको तप करके उच्च आसन प्राप्त करने की सलाह दी । ध्रुव ने कठोर तप करके भगवान के दर्शन किए और अटल पद प्राप्त किया ।

तिरे जल पाषान- नील और नल दोनो वानर भाइयो को यह वरदान था कि उनके द्वारा स्पर्श किया हुआ पत्थर डूबेगा नही । इन्ही दोनो ने लंका पर